कड़ी धूप में हम बिना सनस्क्रीन के नहीं निकलते हैं। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि हम में से लगभग 90 फीसद लोगों को सनस्क्रीन के बारे में टीवी के विज्ञापनों से ज्यादा कुछ नहीं पता। जैसे – कौन सी सनस्क्रीन लगानी चाहिए, कितने एसपीएफ की सनस्क्रीन त्वचा के लिए सही रहेगी, कितनी सनस्क्रीन लगानी चाहिए । इस मामले में ज्यादातर लोगों को कुछ नहीं पता। क्यों न इस बार हम सनस्क्रीन को सही तरीके से जानें, समझें।
अल्ट्रावायलेट किरणों का प्रभाव :-
बिना सनस्क्रीन के जब हम धूप में जाते हैं तो हमारी त्वचा के जलने, रंग बदलने और खराब होने का खतरा बना रहता है। यदि यूवी किरणों का कम एक्सपोजर होता है तो भी ये किरणें हमारी त्वचा के कोलैजन को तोड़ती हैं और हमारी त्वचा पर झुर्रियों के आने का कारण बनती हैं। मुंबई के डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. अप्रतिम गोयल के अनुसार, धूप में देर तक रहने से कई लोगों की त्वचा का रंग काला पड़ता है। कुछेक मामलों में तो त्वचा कैंसर होने का खतरा भी होता है। देर तक धूप में रहने से कुछ लोगों को एक्ने और ल्यूपस भी हो जाते हैं। अध्ययन बताते हैं कि स्किन कैंसर के 90 फीसदी मामलों की वजह यूवी किरणें होती हैं लेकिन यह खुशखबरी ही है कि अपने देश में स्किन कैंसर आम नहीं है।
सांवले रंग को भी जरूरत :-
लोगों का मानना है कि जिनकी त्वचा का रंग गहरा होता है, उन्हें सनस्क्रीन की जरूरत नहीं पड़ती। यह काफी हद तक सही भी है क्योंकि हमारी भूरी त्वचा सूरज से हमें प्राकृतिक तौर पर काफी हद तक सुरक्षित रखती है। दरअसल गहरे रंग की त्वचा में मेलानिन अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो यूवी किरणों को रोकता है। फिर भी, सभी को सूरज की तेज किरणों से त्वचा पर दाग-धब्बे और पिगमेंटेशन का खतरा बना रहता है। दिल्ली स्थित नेशनल स्किन सेंटर के डॉ. नवीन तनेजा कहते हैं, आपकी त्वचा का रंग चाहे जैसा भी हो, आपको यूवीए कवरेज और कम से कम 15 एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन लगाकर ही धूप में बाहर निकलना चाहिए। हाइड्रेटिंग सनस्क्रीन लोशन का प्रयोग करना चाहिए ताकि आपको अतिरिक्त मॉइश्चर की जरूरत ही न पड़े। इन दिनों एसपीएफ सहित कई मॉइश्चराइजर और मेकअप बेस मिलने लगे हैं।
एसपीएफ और सनस्क्रीन :-
एसपीएफ का अर्थ सन प्रोटेक्शन फैक्टर है, जो सनस्क्रीन के प्रभाव को बयान करता है। यह सूरज की खतरनाक यूवी किरणों से त्वचा की सुरक्षा के लिए सनस्क्रीन की क्षमता का द्योतक है। यह इस बात का भी माप है कि वह उत्पाद कितनी देर तक त्वचा को लाल होने से रोक सकता है। यदि बिना सनस्क्रीन के त्वचा के लाल होने की शुरुआत में 20 मिनट लगते हैं तो 15 एसपीएफ वाली सनस्क्रीन इसकी 15 गुणी अधिक देर तक त्वचा को लाल होने से रोक सकती है (पांच घंटे या 300 मिनट)।
ब्रॉड स्पेक्ट्रम प्रोटेक्शन :-
ब्रॉड स्पेक्ट्रम युक्त सनस्क्रीन यूवीबी और यूवीए किरणों से हमारी त्वचा की सुरक्षा करता है। यूवीए किरणें झुर्रियां और समय से पहले उम्र के असर का कारण हैं। यूवीबी किरणें स्किन बर्न, इरिटेशन और स्किन कैंसर का कारण हो सकती हैं, हालांकि एसपीएफ के साथ इनसे लड़ा जा सकता है। एक बेहतरीन ब्रॉड स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन में कम से कम 15 एसपीएफ तो होना ही चाहिए। साथ ही इसमें एवोबेनजोन, टाइटैनियम डायऑक्साइड या जिंक ऑक्साइड भी होना चाहिए, यह बताती हैं बेंगलूरू की डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. चित्रा आनंद।
विटामिन डी और सनस्क्रीन :-
लोगों की धारणा है कि सनस्क्रीन लगाने से विटामिन डी अवरुद्ध हो जाता है, जबकि यह केवल एक मिथक है। कोई भी सनस्क्रीन 100 फीसद सूरज की रोशनीऔर न ही विटामिन डी को पूरी तरह से रोक सकता है। हां, यह जरूर है कि अधिक मात्रा वाले एसपीएफ सनस्क्रीन के इस्तेमाल से विटामिन डी की कमी हो सकती है। हमारे शरीर को विटामिन डी दो तरह से मिलता है। पहला, सूरज की रोशनी से और दूसरा विशेष कर, सालमन मछली और अण्डे की जर्दी से।
फिजिकल और केमिकल सनस्क्रीन :-
सनस्क्रीन में ऑर्गेनिक और इनऑर्गेनिक तत्व होते हैं, जो यूवी किरणों को ग्रहण या रिफ्लेक्ट करके हमारी त्वचा की सुरक्षा करते हैं। केमिकल सनस्क्रीन यूवी किरणों को ग्रहण करने में मददगार होता है और इस तरह से इन किरणों को कम खतरनाक बना देता है। इसमें मेक्सॉरिल, एवोबेनजोन, ऑक्सीबेनजोन होते हैं, जो त्वचा पर इरिटेशन और एलर्जी का कारण बनते हैं। इनऑर्गेनिक तत्व यूवी किरणों को ग्रहण नहीं करते और उन्हें रिफ्लेक्ट करके हमारे शरीर से दूर कर देते हैं।
सनस्क्रीन की सही मात्रा :-
अमूमन लोग बहुत कम मात्रा में सनस्क्रीन का प्रयोग करते हैं। जबकि विशेषज्ञों की सलाह है कि 5 से 6 बड़े चम्मच के अनुपात में सनस्क्रीन का प्रयोग करके पूरे शरीर पर लगाना चाहिए। मुंबई की कॉस्मेटिक फिजिशियन डॉ. जमुना पाई के अनुसार, मौसम चाहे जैसा भी हो, रोजाना चेहरे और गले पर उंगली पर दो बार सनस्क्रीन लेकर लगाना चाहिए। यह त्वचा पर एक लेयर का निर्माण करता है और धूप में निकलने से करीब आधे घंटे पहले इसे लगाना चाहिए। हर दो-तीन घंटे पर सनस्क्रीन को लगाते रहना चाहिए। भले ही उत्पाद पर कुछ भी लिखा हो, यदि आपको खूब पसीना निकल रहा हो या आप पानी में गतिविधि कर रही हों, तो भी इसे लगाते रहिए। याद रखिए कि बार-बार सनस्क्रीन लगाने से इसका एसपीएफ बढ़ता नहीं। आप 15 एसपीएफ की सनस्क्रीन दो बार लगाकर इसे 30 एसपीएफ का नहीं बना सकतीं।
बारिश के दिन हों या घर के अंदर :-
बादलों और शीशे की खिड़की से भी यूवीए किरणें हमारी त्वचा पर आ जाती हैं और स्किन इरिटेशन के साथ ही त्वचा के गहरे होने का कारण बन सकती हैं। इसलिए सर्दियां हों या बारिश का मौसम, सनस्क्रीन लगाना नहीं भूलिए। यदि आप स्विमिंग करने जा रही हों तो वॉटर रेसिस्टेंट और स्वेट रेसिस्टेंट सनस्क्रीन का प्रयोग कीजिए। कोई भी सनस्क्रीन क्रीम सूरज की तेज किरणों से हमारी त्वचा की सुरक्षा 100 फीसद नहीं करती है। इसलिए खुद को पूरी तरह ढक कर बाहर निकलिए। साथ बड़े फ्रेम वाला धूप का चश्मा लगाइए और छतरी लीजिए। गर्मी के दिनों में सुबह के 11 बजे से 3 बजे तक घर के अंदर ही रहने की कोशिश कीजिए। यदि आपको सनस्क्रीन से एलर्जी है तो डर्मेटोलॉजिस्ट से संपर्क कीजिए, वे आपको एंटीऑक्सिडेंट सनस्क्रीन लगाने की सलाह देंगे।

कई तरह की सनस्क्रीन :-
तैलीय त्वचा या एक्ने त्वचा वालों को फ्लूड बेस, जेल या जेल-क्रीम सनस्क्रीन का ही प्रयोग करना चाहिए। ध्यान रखिए कि यह चिकनाई युक्त न हो। रूखी त्वचा वालों को मोटी क्रीम या मॉइश्चराइजर युक्त सनस्क्रीन लगाना चाहिए, जो अधिक तैलीय और चिकनाई युक्त होता है। सामान्य त्वचा वालों को संतुलित सनस्क्रीन क्रीम लगानी चाहिए, जो न अधिक चिकनाई वाला हो और न ही अधिक पतली। संवेदनशील त्वचा वालों को हाइपोएलर्जिक, सूदिंग, एंटी इरिटेंट और बिना खुशबू वाली सनस्क्रीन क्रीम का प्रयोग करना चाहिए।
विटामिन डी और सनस्क्रीन :-
लोगों की धारणा है कि सनस्क्रीन लगाने से विटामिन डी अवरुद्ध हो जाता है, जबकि यह केवल एक मिथक है। कोई भी सनस्क्रीन 100 फीसद सूरज की रोशनीऔर न ही विटामिन डी को पूरी तरह से रोक सकता है। हां, यह जरूर है कि अधिक मात्रा वाले एसपीएफ सनस्क्रीन के इस्तेमाल से विटामिन डी की कमी हो सकती है। हमारे शरीर को विटामिन डी दो तरह से मिलता है। पहला, सूरज की रोशनी से और दूसरा, भोजन विशेषकर, सालमन मछली और अण्डे की जर्दी से।
