Panchtantra ki kahani नकलची ने किया जो गड़बड़झाला
Panchtantra ki kahani नकलची ने किया जो गड़बड़झाला

किसी नगर में एक बड़ा ही धनवान सेठ रहता था, मणिभद्र । नगर में उसकी बड़ी इज्जत थी । सेठ बड़ा धार्मिक स्वभाव का और दयालु था । वह खूब दान-पुण्य और परोपकार भी करता था । इसलिए सभी उसकी इज्जत करते थे ।

पर फिर किसी कारण उस सेठ का सारा धन नष्ट हो गया । उसकी हालत बहुत खराब हो गई । धन न रहने पर पल-पल उसके पास मँडराने और जी भरकर तारीफ करने वाले मित्र और रिश्तेदार उसे ताने देने लगे । उसका जीवन बड़ा अपमान भरा हो गया ।

आखिर दुख और ग्लानि से भरकर उसने सोचा, ‘धन के बिना जीना तो नरक में जीने जैसा है । जो कभी मेरे सामने आँख भी नहीं उठाते थे, वे आज अकड़कर बात करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि आज मेरे पास पहले की तरह धन और संपत्ति नहीं रही ।’

यहाँ तक कि जिन लोगों का कर्ज उसे चुकाना था, वे सपने में आकर उसे भयभीत करते थे । तब सेठ के मुँह से बार-बार निकलता था, “हाय, इस जीवन को तो धिक्कार है, लाख-लाख धिक्कार ।”

आखिर दुखी होकर मणिभद्र ने आत्महत्या करने का निर्णय किया । सुबह उठते ही वह अपना जीवन समाप्त कर देगा, यह निश्चय करके वह सो गया ।

रात वह सो रहा था, तभी सपने में एक जैन साधु दिखाई दिया । उसने मणिभद्र को दिलासा देते हुए कहा, “भाई, इतने परेशान क्यों होते हो? मैं तो तुम्हारे और तुम्हारे पूर्वजों के पुण्य कार्यों द्वारा संचित पद्मनिधि हूँ । कल सुबह मैं साधु के रूप में तुम्हारे घर आऊँगा । जैसे ही मैं तुम्हारे घर आऊँ देहरी पर ही तुम मुझ पर लाठी की चोट करना । तब मैं मरकर सोने में बदल जाऊँगा । पूरे तीन मन सोना तुम्हें प्राप्त होगा । तुम इससे नए सिरे से व्यापार शुरू करो । जल्दी ही तुम तरक्की करके फिर से नगर सेठ बन जाओगे ।”

सुनकर मणिभद्र को बड़ा अचरज हुआ । इसी बात पर विचार करता हुआ वह रात को सोया । बार-बार एक ही विचार उसके मन में दौड़ रहा था कि सुबह उठते ही जैन साधु पद्मनिधि पर लाठी की चोट करनी है ।

सुबह वह उठा तो सपने के बारे में ही सोच रहा था । अचानक उसी तरह उसे पद्मनिधि घर में आता हुआ दिखाई दिया । उसी समय एक नाई भी वहां आ गया जिसे उसकी पत्नी ने घर बुलाया था ।

जैसा कि सपने वाले जैन साधु ने कहा था, मणिभद्र ने सामने दिखाई पड़े साधु पर लाठी से प्रहार किया । उसी समय वह गिरकर मर गया और सोने की मूर्ति में बदल गया । मणिभद्र ने नाई की मदद से उसे घर के भीतर वाले कक्ष में रखवा दिया । फिर नाई को कुछ धन देकर कहा, “तुम यह बात किसी को मत बताना ।

नाई ने यह सब देखा अब तो उसे बड़ा अचंभा हुआ । वह सोचने लगा, “अरे, यह तो कोई जादुई रहस्य है ।”

फिर उसके मन में विचार आया किये जैन साधु बड़ी तंत्र-विद्या जानते हैं । क्या आश्चर्य कि इन्हीं सिद्धियों के कारण इनके पास ढेर सारा सोना और दौलत हो!

अब नाई ने सोचा, ‘मुझे भी दौलत हासिल करने का यही तरीका आजमाना चाहिए । यह तो सबसे आसान है ।’

कुछ समय बाद वह जैन साधुओं के आश्रम में गया और बोला, “कल आप सुबह मेरे घर चलकर भोजन करें तो बड़ी कृपा होगी ।”

इस पर जैन साधुओं के प्रमुख आचार्य ने कहा, “अरे भई हम उस तरह के साधु नहीं हैं । हम किसी के घर भोजन करने नहीं जाते । भूख लगी हो तो आसपास जहाँ से भी मिल जाए, मुट्ठी अन्न ग्रहण कर लेते हैं । बस वही हमारा भोजन है ।”

इस पर नाई ने आग्रह करते हुए कहा, “आपकी बात ठीक है, पर मैं एक और कारण से यह आग्रह कर रहा हूँ । मेरे पास ढेर सारा धन है जिसे मैंने धर्मार्थ दान के लिए इकट्ठा किया हुआ है । उसे आप लोग ग्रहण कर लें तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी ।”

उसकी ऐसी श्रद्धा देखकर सभी साधुओं ने सोचा, ‘तब तो हम सभी को चलकर वहां जरूर जाना चाहिए ताकि इस धर्म, कर्म और परोपकार करने वाले दयालु व्यक्ति का मनोबल बड़े ।’

लिहाजा सब साधु वहां चलने के लिए तैयार हो गए ।

उधर नाई ने खूब तेल पिलाकर लाठी तैयार कर ली और उसे घर के द्वार के पास ही छिपाकर रख दिया था । फिर वह साधुओं को लेने के लिए चल पड़ा ।

जैसे ही जैन साधु उसके यहाँ आए उसने एक-एक के सिर पर जोर से लाठी की चोट करनी शुरू की । साधु कई थे, पर बेचारे अहिंसा के मंत्र में बँधे हुए थे । लिहाजा पलटकर मारने की बजाय सब मार खा-खाकर गिरने लगे । चीख पुकार और कोहराम मच गया ।

किसी ने दौड़कर राजा को भी यह बात बता दी । राजा ने सैनिकों को वहां भेजा जो उसे पकड़कर राजदरबार में ले गए ।

राजा ने गुस्से में आकर नाई से पूछा, तुमने इन सीधे-सादे जैन साधुओं को क्यों मारा? अहिंसा व्रत का पालन करने वाले इन सीधे-सरल साधुओं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?”

इस पर नाई ने वह पूरा किस्सा बता दिया जो उसने सेठ मणिभद्र के यहाँ देखा था ।

सेठ मणिभद्र को बुलवाया गया । तो उसने अपने सपने का पूरा हाल बताया कि जैन साधु ने ही उसे सपने में आकर ऐसा करने के लिए कहा था ।

इस पर राजा और सभी लोगों ने नाई को खूब फटकार लगाई । कहा, “अरे भई किसी दूसरे को देखकर, आंख बंद करके वैसा नहीं करने लग जाना चाहिए । पहले उसका पूरा भाव समझना चाहिए कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? बिना समझे दूसरों की नकल करने वालों का वैसा ही बुरा हाल होता है, जैसे तुम्हारा ।”

कहकर राजा ने साधुओं की हत्या करने के अपराध में नाई को दंड की सजा दी । उधर नाई सोचता रहा, ‘आह, अपनी मूर्खता से मैंने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली ।’