Miscarriage Prevention: शादी के बाद हर महिला मां बनना चाहती है, लेकिन कई कारणो से उनका गर्भ ठहर नही पाता और गर्भपात हो जाता है। कई महिलाएं तो बार-बार गर्भपात या रिकरिंग मिसकैरेज का दर्द झेलती हैं जो उन के लिए पीड़ादायक और तनावपूर्ण अनुभव होता है। वैज्ञानिकों के हिसाब से बार-बार गर्भपात होने की दर काफी कम है। जहां नाॅर्मल कपल्स मे गर्भपात की दर 10-15 प्रतिशत होती है, वहीं दूसरी बार 2 प्रतिशत और तीसरी बार गर्भपात केवल 1 प्रतिशत ही मिलता है।
जिंदल अस्पताल, मेेरठ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅ अंशु जिंदल के अनुसार 35 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को गर्भपात के हाई रिस्क कैटेगरी में आती हैै। अंडो की क्वालिटी खराब होने से भ्रूण का हैल्दी विकास नहीं हो पाता। 2-3 बार पहले गर्भपात झेल चुकी और डायबिटीज, हाइपोथायराॅयड पीड़ित महिलाओं में भी गर्भपात होने की संभावना ज्यादा रहती है।
क्या है कारण और निवारण-
गर्भपात ज्यादातर प्रेगनेंसी की पहली और दूसरी तिमाही में होते हैं। पहली में जेनेटिक या भ्रूण में खराबी से और दूसरी महिला के यूटरस में विकार या अन्य कारणों से होते हैं।
जेनेटिक भ्रूण विकार-
गर्भपात के 80 प्रतिशत मामले भ्रूण में विकार के कारण होते हैं। भ्रूण महिला के अंडे और पुरुष स्पर्म मे मौजूद 23-23 क्रोमोसोम के फर्टिलाइज होने पर बनता है। क्रोमोसोेम में विकार होने पर भ्रूण में भी कोई न कोई जेनेटिक विकार आ जाता है। ऐसे विकृत भ्रूण विकसित नही हो पाता, प्रकृति खुद ब खुद यूटरस से बाहर फेंक देती है और गर्भपात हो जाता है।
अगर मां का ब्लड ग्रुप आरएच नेगेटिव है और पिता का पाॅजिटिव है तो यह भी जेनेटिक गर्भपात का कारण बनता है।
उपचार- दोनों पार्टनर या गर्भपात हुए भ्रूण का टिशू से कैरियोटाइप जेनेटिक क्रोमोसोम टेस्ट किया जाता है। मेडिकल साइंस में भ्रूण के जेनेटिक विकार का कोई उपचार नही है। प्रेगनेंसी के इच्छुक दंपति के लिए आईवीएफ तकनीक का सहारा लेना बेस्ट है।
यूटरस में जन्मजात विकृतियां-
महिला के यूटरस में जन्मजात विकृतियां या म्यूलेरियन डक्ट डिफेक्ट्स भी गर्भपात का कारण बनते हैं।
सेप्टेट यूटरस- यूटरस के बीच सेप्टम मेम्ब्रेन या झिल्ली होती है। भ्रूण इस पर चिपक जाता है,। समुचित ब्लड सप्लाई न हो पाने के कारण विकसित न हो पाता और गर्भपात हो जाता है।
उपचार-लेप्रोस्कोपी या दूरबीन आॅपरेशन से सेप्टम वाॅल को काट दी जाती है।
टी-शेप यूटरस– इसमें यूटरस एक तरफ बना होता है, दूसरी तरफ की अविकसित हाॅर्न होता है जो अतिरिक्त और अनुपयोगी उपांग होता है। इससे भ्रूण का विकास नही हो पाता।
उपचार- हिस्टेरोस्कोपी लेज़र सर्जरी से ठीक किया जाता है।
सर्वाइकल इनकाॅम्पिटेंस- यूटरस का मुंह यानी सर्विक्स कमजोर होता है और समय से पहले खुल जाता है। जिससे समय से पहले अपरिपक्व बच्चे के जन्म का खतरा रहता है या गर्भपात हो जाता है।
उपचार- दूसरी प्रेगनेंसी से पहले सर्विक्स को वजाइना से स्टिच कर बांध दिया जाता हैै। या फिर लेप्रोस्कोपिक इनसेरक्लेज या टोटल एब्डोमिनल सेरक्लेज किया जाता है। जिसमें सर्विक्स के ऊपरी भाग को स्टिच करके यूटरस का मुंह बंद कर दिया जाता है।

फ्रायब्राॅयड, एंडोमेट्रिओसिस या साइनिकी चिपचिपापन- इनसे यूटरस के अंदरुनी परत मांसपेशियों में चली जाती है, यूटरस को कमजोर कर देती है और गर्भपात हो जाता है।
उपचार- फ्रायब्राॅयड जैसे विकार लेप्रोस्कोपी सर्जरी से और साइनिकी को हिस्टेरोस्कोपी लेज़र सर्जरी से ठीक किया जा सकता है।
पाॅलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम- महिलाओं में अंडा बनने की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है, हार्मोन का लेवल गड़बड़ा जाता है और गर्भपात की संभावना दोगुनी हो जाती है।
उपचार- प्रेगनेंसी की शुरुआत से ही हार्मोन थेरेपी दी जाती है
रक्त विकार-महिला के रक्त में एंटीफोस्फोलिपिड सिंड्रोम के कारण प्रोटीन की अधिकता से एंटीबाॅडीज बन जाती हैं। रक्त में माइक्रोथोम्बस या छोटे-छोटे थक्के बन जाते हैं। येे यूटरस के प्लेसेंटा तक पहुंचकर भ्रूण में ब्लड सर्कुलेशन को ब्लाॅक कर देते हैं जिससे गर्भपात हो जाता है।
उपचार- रक्त में एंटीबाॅडीज के लेवल ज्यादा होने पर महिला को पूरी गर्भावस्था में ब्लड थिनर हैपरिन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं और बेबी एस्पीरिन दी जाती है।
अन्य कारण-
देर से शादी या 35 साल से ज्यादा उम्र में मां बनने पर गर्भपात की आशंका 40-50 प्रतिशत बढ़ जाती है। इस स्टेज पर ओवरीज के हार्मोन और अंडा बनाने की क्षमता कम हो जाती है। सीरम एएमएच लेवल सेेे जांच की जाती है और उसी हिसाब से उपचार किया जाता है।
एंडोक्राइम ग्लैंड्स से रिलीज होने वाले हार्मोन शरीर और रिप्रोडक्टिव अंगों के फंक्शन को रेगुलेट करते हैं। कई गर्भवती महिलाओं में हार्मोन-अंसतुलन की वजह बार-बार गर्भपात हो जाता है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को हार्मोन थेरेपी और इम्यून थेरेपी दी जाती है।
पुरुषों के सिमन में डीएनए फ्रेगमेंटेशन इंडेक्स 30-35 प्रतिशत से ज्यादा होना भी गर्भपात का कारण है। इससे पुरुषों के स्पर्म काउंट में कमी ओैर स्पर्म की क्वालिटी भी प्रभावित होती है। निवारण के लिए उन्हें 3 महीने तक एंटीआॅक्सीडेंट कैप्स्यूल का कोर्स कराया जाता है।
मोटापा, थायराॅयड, जेस्टेशनल डायबिटीज मलाइटस, पीसीओडी, ओबेसिटी जैसी क्रोनिक डिजीज जैसे कारण भी गर्भपात के खतरे को बढ़ा देते हैं। महिलाओं को गर्भाधान में दिक्कत आ सकती है, आगे जाकर गर्भपात हो सकता है।

अनहेल्दी लाइफ स्टाइल, अनहेल्दी फूड हैबिट्स बार-बार गर्भपात का बड़ा कारण है। एल्कोहल, तंबाकू, ड्रग्स, स्मोकिंग, चाय-काॅफी कैफीन का अधिक सेवन गर्भपात की दर बढाती है। कंसीव करने से पहले फोलिक एसिड, विटामिन बी12 और विटामिन डी की कमी भी गर्भपात की आशंका बढ़ाती है।
गर्भपात के बाद क्या रखे ध्यान-
गर्भपात से बचने के लिए प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले ही नहीं, शादी के पहले से काॅन्शियस होना जरूरी है। गर्भपात के बाद भी तकरीबन 85 प्रतिशत महिलाएं दुबारा कंसीव कर लेती हैं। शारीरिक-मानसिक रूप् से मजबूत बनने और तनावमुक्त रहकर यथासंभव खुश रहनेे की कोशिश करनी चाहिए।
-लेट मैरिज और लेट फैमिली प्लानिंग अवायड करें
-शादी से पहले ही दोनों को ब्लड ग्रुप चैक करें।
-गर्भपात के बाद कम से कम 24 घंटे आराम जरूर करें। कम से कम एक सप्ताह ज्यादा मेहनत वाले काम न करें
– इंफेक्शन से बचने के लिए ब्लीडिंग के लिए टैम्पूज़ का इस्तेमाल न करें।
-फिजीकल रिलेशनशिप न बनाएं।
-गर्भपात के बाद महिला को नाॅर्मल पीरियड्स आने में 4-6 सप्ताह का समय लगता है। जब तक 2 बार नाॅर्मल पीरियड्स न हो जाएं या कम से कम 3 महीने दुबारा प्रेगनेंसी प्लान न करें ताकि बाॅडी पूरी तरह रिकवर हो सके।
-दुबारा कंसीव करने के लिए महिलाओं को डाॅक्टर से कंसल्ट जरूर करे।अगली प्रेगनेंसी से पहले गर्भपात के कारणों को खत्म करने की कोशिश करें।
-अगर महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पुरुष का पाॅजीटिव है, तो एंटी-डी इंजेक्शन लगवाएं। ताकि शरीर में एंटीबाॅडीज न बनें और प्रेगनेंसी में दुबारा दिक्कत न हो।
-सेहत का पूरा ध्यान रखें। फोलिक एसिड, आयरन, प्रोटीन,विटामिनबी 12,डी, ई जैसे पौष्टिक तत्वों और एंटीआॅक्सीडेंट से भरपूर आहार लें। डाॅक्टर के परामर्श से जरूरी सप्लीमेंट भी लें। लिक्विड डाइट ज्यादा लें। दिन में कम से कम 2-3 लिटर पानी जरूर पिएं।
-फिटनेस पर पूरा ध्यान दंे। हल्का व्यायाम या वाॅक जरूर करें। इससे बाॅडी हार्मोन रेगुलेट होंगंे और दुबारा प्रेगनेंसी में दिक्कत आने की संभावना कम होगी।
-यथासंभव स्ट्रेस, टेंशन से बचें। रिलेक्स रहने के लिए मेडिटेशन, पसंदीदा म्यूजिक सुनें या बुक्स पढें, क्रिएटिव काम करें, दोस्तों या परिवार के साथ समय बिताएं।
-एल्कोहल, स्मोकिंग, कैफीन जैसी चीजों का सेवन नही करें।