तेलंगाना का एक मंदिर अपनी बनावट और नाम के चलते भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। इस मंदिर में आने के लिए भक्त मानिए कि इंतजार करते हैं। ये है रामप्पा मंदिर जिसे रामलिंगेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। इस प्राचीन मंदिर की खूबसूरती ऐसी है कि जो भी इसे देखता है अचंभित जरूर होता है। 800 साल पुराने इस शिव मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर को सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि खूबसूरत शिल्प के चलते भी जाना जाता है। इसके आर्किटेक्चर के बारे में जानना भी काफी रोचक है। इस अनोखे मंदिर से जुड़ी सारी बातें, जान लीजिए-

बनाने वाले का मिला नाम

रामलिंगेश्वर मंदिर को आम लोगों के बीच रामप्पा मंदिर भी कहा जाता है, इसके पीछे एक अनोखी बात है। दरअसल इस मंदिर को बनाने वाले शिल्पकार का नाम रामप्पा था। बाद में यही नाम मंदिर का भी रख दिया गया। ऐसा राजा के कहने पर किया गया था। वो मंदिर के शिल्प से इतने खुश हुए थे कि उनसे ऐसा किए बिना रह ही नहीं गया। उन्होंने मंदिर को शिल्पकर का ही नाम दे दिया था। 

40 साल का समय

इस मंदिर को बनने में बहुत लंबा समय लगा था। पूरे 40 साल के बाद इस मंदिर का निर्माण पूरा हो पाया था। लेकिन मंदिर की सुंदरता देखकर ये समय भी कम ही लगता है। ये मंदिर भगवान शिव का है लेकिन यहां नंदी की मूर्ति भी है, जो मंदिर की ओर मुंह किए हुए है। 

काकतिया वंश के राजा

इस रामलिंगेश्वर मंदिर को काकतिया वंश के राजा ने बनवाया था। और इसका ख्याल उन्हें किसी खास घटना की वजह से नहीं आया था बल्कि 2013 ईसवीं में आंध्र प्रदेश में महाराजा गणपती देव को बस एक दिन यूंहीं ऐसे एक शिव मंदिर के निर्माण का ख्याल आया था। फिर उन्होंने इस काम का जिम्मा शिल्पकार रामप्पा को दिया था। ऐसा करते समय राजा ने सिर्फ एक ही बात बोली थी कि ये एक ऐसा मंदिर होना चाहिए, जो सालों तक टिका रहे, इसमें कोई दिक्कत ना आए। 

 

मार्को पोलो ने माना चमकीला तारा

13वीं सदी में खोजकर्ता मार्को पोलो भारत आए थे। तब वो इस मंदिर को देखकर इतने खुश हुए थे कि इसको मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा माना था। 

 

800 साल बाद भी मजबूत

वरंगल से 67 किलोमीटर दूर बना ये मंदिर अब से करीब 800 साल पहले बनवाया गया था लेकिन ये जरा सा भी टूटा नहीं हैं। ये तब है जब इसी अवधि में बने कई दूसरे मंदिर अपनी रौनक खो चुके हैं। अब ऐसे में कई लोगों ने इसकी वजह जानने की कोशिश की। पालमपेट गांव स्थित इस मंदिर के पास पहुंच कई जांच करने के बाद भी इसकी मजबूती के पीछे का रहस्य कोई नहीं लगा पाया। 

पानी में तैरने वाला पत्थर

पुरातत्व विभाग ने मंदिर की गहन जांच की तो एक बेहद चौकाने वाली बात सामने आ। इस मंदिर में लगे पत्थरों की जांच में पाया गया कि ये पत्थर पानी में तैर सकते हैं। जबकि ज्यादातर प्राचीन मंदिर भारी पत्थरों से बनाए गए और बाद में उन्हें जीर्णोंद्धार की जरूरत भी पड़ी। मगर इस मंदिर में सभी हल्के पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था और यही वजह रही कि मंदिर को कभी कोई हानि हुई ही नहीं। 

हल्के पत्थर कहांकहां

पूरी दुनिया में सिर्फ रामसेतू के पत्थर ही ऐसे हैं जो पानी में तैर सकते हैं। अब रामलिंगेश्वर मंदिर को बनाते समय ये हल्के पत्थर कहां से आए ये एक सवाल है। माना ये भी जा रहा है कि शिल्पकार रामप्पा ने ये हल्के पत्थर खुद बनाए थे। 

झील की रौनक

मंदिर के पास एक सुंदर झील है, जिसके किनारे पर्यटन विभाग की ओर से बने कॉटेज यात्रियों को आराम देने का कम करते हैं। यहां विभाग की ओर से बने रेस्ट्रा भी हैं। 

 

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