असीम प्रसव पीड़ा झेलने के बाद जब कोई भी स्त्री अपने शिशु को देखती है तो उसे उस समय होने वाले अहसास को वह किसी के सामने व्यक्त नहीं कर सकती। अपनी संतान की एक झलक देखते ही वह निहाल हो उठती है। घर में शिशु के कदम हर परिवार के लिए शुभतापूर्ण होते हैं। हरेक की यही कामना होती है कि बेटा हो या बेटी, बस वह स्वस्थ हो। बच्चे के पैदा होने पर खुशी तो होती ही है, लेकिन कई सामान्य समस्याएं हैं, जो उसकी सेहत पर असर डाल सकती है। बच्चे के जन्म से ले कर डेढ़-दो महीने तक उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत पड़ती है। अगर उसकी छोटी-छोटी बातों पर नज़र ना रखी जाए तो ये हेल्थ इश्यू कल को नुकसानदेय भी हो सकते हैं। ईश्वर ना करे कि ऐसा कुछ हो, तो आइए इन समस्याओं पर एक नज़र डालें-

1. बच्चे का जन्म के बाद तुरंत ना रोना

जन्म के समय रोने पर शिशु के शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन जाती है और उसके दिमाग का विकास होता है। अगर बच्चा तुरंत ना रोए तो दिमाग तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और उसके किसी भी तरह की मस्तिष्क से संबंधित बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है। जन्म लेते समय वह अपनी मां की कोख से अलग होता है तो उसका रोना यह दर्शाता है कि उसके शरीर के सभी मुख्य अंग काम कर रहे हैं।

2. जल्दी ही संक्रमण में आ जाना

जन्म के बाद शिशु बहुत कमजोर और कोमल होता है, जिस कारण वह शीघ्र ही दूसरों के संपर्क में आकर संक्रमित हो सकता है। जब भी शिशु को उठाएं तो पहले अपने हाथों को धो लें। उसे बार-बार चूमें नहीं। उसको पहनाए जाने वाले कपड़े, तौलिया, बिस्तर आदि सब मेडिकेटिड फैब्रिक वॉश में धुले हों।

3. समय पूर्व प्रसव होना

आमतौर पर गर्भावस्था 40 हफ्तों की होती है, लेकिन कभी-कभी गर्भावस्था के सातवें या आठवें महीने में ही प्री-मेच्योर डिलीवरी हो जाती है। ऐसे बच्चों को गर्भ में विकसित होने का पूरा समय ना मिल पाने के कारण ये कई गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। आटिज़्म, सेरेवल पॉल्सी, सांस संबंधी समस्याएं इनमें प्रमुख हैं। 

4. पीलिया होना

नवजात शिशु में यह सामान्य समस्या मानी जाती है। इस स्थिति में त्वचा और आंखों का रंग पीला हो जाता है। यह खून में बिलूरुबिन नामक पदार्थ के बढ़ने के कारण होता है। डॉक्टरी ईलाज के बाद यह ठीक हो जाता है, लेकिन इस दौरान शिशु का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है।

5. कुपोषण का शिकार

कई बार बच्चे जन्म लेते समय बहुत कम वजन का होता है और उसे सांस भी देनी पड़ जाती है। उसे काफी दिनों तक इंक्यूबेटर में भी रखा जाता है। जब मां गर्भावस्था में अपने खाने-पीने पर ध्यान नहीं देती या किसी बीमारी से ग्रसित होती है तो उसका अजन्मा शिशु पोषक तत्त्व ग्रहण नहीं कर पाता और वह इतना कमजोर होता है कि मां के स्तनों से दूध भी नहीं खींच सकता। उसे नली द्वारा या चम्मच से दूध देने की कोशिश की जाती है।

6. दूध उगलना 

कई बार स्तनपान के थोड़ी देर बाद दही जैसा फटा दूध मुंह से उगल देते हैं, जो सामान्य है। जब भी बच्चा दूध पी चुका हो तो उसे कंधे से लगा कर धीरे-धीरे उसकी पीठ पर तब तक थपकी दें जब तक उसको डकार ना आ जाए।

7. पेट में गैस होना

जब शिशु स्तनपान करते हैं या बोतल से दूध पीते हैं तो वे दूध के साथ हवा भी अंदर ले लेते हैं, तो यह समस्या हो जाती है। मां के द्वारा खाए जाने वाले भोजन को जब शिशु दूध के रूप में लेता है तो भी उसे गैस की समस्या हो जाती है, तभी तो मां को हल्का और सुपाच्य भोजन लेने को कहा जाता है। गैस होने पर बच्चा अपनी टांगों को इकट्ठा करके रोने लगता है। ऐसा होने पर थोड़ी-सी हींग को हल्के पानी में घोल लें व उसकी नाभि के चारों तरफ लेप करें, आराम मिलेगा।

  8. नैपी रैश

कई बार नैपी बांधने के स्थान पर लाल रंग के रैशेज पड़ जाते हैं जो बहुत तकलीफ देते हैं। आजकल माॢकट में कई तरह के क्रीम व पाउडर रूप में बेबी प्रॉडक्ट्स उपलब्ध हैं, जिनसे त्वचा को बिना नुकसान हुए आराम मिलता है। कोशिश करें कि बच्चे को घर की बनी सॉफ्ट व सूती कपड़े की नैप्पी पहनाएं।

9. बार-बार पौटी और सू-सू करना

एक महीने से छोटे शिशु को कम-से-कम एक दिन में 7-8 बार डायपर बदलने की जरूरत पड़ती है। बच्चा चार-पांच बार सू-सू व पौटी करता है। हर बार दूध पीने के बाद बच्चे की यह क्रिया दर्शाती है कि बच्चा पर्याप्त दूध पी रहा है। दरअसल जब शिशु का पेट भर जाता है तो दूध उसके पाचन-तंत्र को उत्तेजित करता है, जो मल-त्याग का कारण होता है।

10. बर्थ-इंजीरिज़

कई मामलों में बच्चे के जन्म के समय उन्हें किसी तरह की इंजरी हो जाती है जो सामान्य होती है और ठीक भी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर कई बार जन्म के वक्त शिशु गर्भ में उल्टा हो जाता है और सिर की बजाय टांगें पहले बाहर आती हैं, शिशु का सिर बड़ा होना, उसकेकंधे फंस जाना, गर्भनाल का शिशु की गर्दन पर लिपट जाना आदि।

12. मां का दूध ना मिल पाना

बच्चे के जन्म के बाद मां का पहला पीला गाढ़ा दूध कोलेस्ट्रम बच्चे को कई तरह की बीमारियों से बचाता है, क्योंकि यह रोग-प्रतिरोधक होता है। किसी कारणवश कभी-कभी मां के स्तनों में दूध नहीं उतरता और शिशु इस अनमोल द्रव्य से वंचित रह जाता है, तब उसे बाजार से मिलने वाले कृत्रिम पाउडर मिल्क या गाय का दूध देकर पेट भरा जाता है। 

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