पूजा करने से पहले क्यों करते हैं आचमन, क्या है इसका महत्त्व और विधि: Aachaman
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Aachaman: हिन्दू धर्म के शास्त्रों में पूजा-पाठ की विभिन्न विधियों और नियमों का वर्णन किया गया है। पूजा से पहले और बाद में कई तरह के नियमों का पालन किया जाता है। इन्हीं नियमों में शामिल है आचमन, किसी भी पूजा को शुरू करने से पहले आचमन नियम बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि आचमन नियम के बिना किसी भी पूजा की शुरुआत नहीं होती। आचमन के जरिए पूजा से पहले शरीर का शुद्धिकरण किया जाता है। आज इस लेख में हम आपको आचमन नियम की विधि, महत्त्व और लाभ को विस्तारपूर्वक बताएंगे।

क्या होता है आचमन नियम

Aachaman Importance
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पूजा को शुरू करने से पहले हाथ में जल लिया जाता है। इस जल को ग्रहण करने से आंतरिक रूप से मन और ह्रदय की शुद्धि की जाती है। आपने अक्सर ही देखा होगा कि जब भी आप किसी पूजा में बैठते हैं तो पंडित जी तांबे के लोटे से तांबे की आचमनी (चम्मच) में जल लेकर आपके हाथ में देते हैं। पंडित जी इस जल को आपको पीने के लिए कहते हैं, इस जल को ग्रहण करने के दौरान मंत्र का उच्चारण किया जाता है और यही प्रक्रिया आचमन कहलाती है। शास्त्रों में आचमन की विधि का भी वर्णन किया गया है।

आचमन की विधि

पूजा शुरू करने से पहले पूजा से सम्बंधित सभी सामग्रियों को एकत्रित कर लें। इन्हीं सामग्रियों में एक तांबे के लोटे या गिलास में गंगाजल या शुद्ध जल भरकर रख दें। इस जल में तुलसी की कुछ पत्तियां भी डालें। जलभरे पात्र में तांबे की आचमनी जरूर रखें। पूजा विधि की शुरुआत करने से पहले भगवान का ध्यान करते हुए आचमनी से जल निकालकर हथेली पर रखें और मंत्रोच्चार के साथ उसका ग्रहण करें। इस विधि को तीन बार दोहराएं।

आचमन करते समय हथेली में 5 तीर्थ-देवतीर्थ, पितृतीर्थ, ब्रह्मातीर्थ, प्रजापत्यतीर्थ और सौम्यतीर्थ बताए गए हैं। अंगूठे के मूल में ब्रह्मातीर्थ, कनिष्ठा मूल (छोटी उंगली) में प्रजापत्यतीर्थ, उंगलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी उंगली और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है।

आचमन के मंत्र

आचमन नियम के दौरान कुछ मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है। ॐ केशवाय नम: , ॐ नाराणाय नम: ॐ माधवाय नम: , ॐ हृषीकेशाय नम:, इस मंत्र के द्वारा अंगूठे से मुख पोछ लें और फिर ॐ गोविंदाय नमः यह मंत्र बोलकर हाथ धो लें। इन मन्त्रों का उच्चारण न कर सकने की स्थिति में आप केवल दाहिने कान का स्पर्श करते हैं तो भी आचमन नियम को पूर्ण माना जाता है।

आचमन में दिशा का महत्व

हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान दिशाओं का ध्यान रखना बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए आचमन करते समय आपका मुंह हमेशा उत्तर ईशान या पूर्व दिशा की ओर ही रहना चाहिए। अन्य किसी भी दिशा की तरफ मुंह करके आचमन करना का कोई भी फल नहीं मिलता।

आचमन का लाभ

आचमन करने के बाद जल से भीगे हुए अंगूठे से मुख को स्पर्श करने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन के बाद मस्तक अभिषेक कराने से शिव की प्राप्ति होती है। साथ ही आचमन नियम के बाद आंखों को स्पर्श करने से सूर्य, नासिका को स्पर्श करने से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं।