देवी मां के शक्तिपीठों में से दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। यह शक्तिपीठ छिन्नमस्तिका मंदिर (Chinnamastika Temple) नाम से प्रसिद्ध है। श्रीयंत्र का स्वरूप छिन्नमस्तिका दस महाविद्याओं में छठा रूप मानी जाती है। यह मंदिर दामोदर-भैरवी संगम के किनारे त्रिकोण मंडल के योनि यंत्र पर स्थापित है, जबकि पूरा मंदिर श्रीयंत्र का आकार लिए हुए है। लाल-नीले और सफेद रंगों से बना यह मंदिर बाहर से बहुत ही खूबसूरत लगता है।
माँ का रूप
मां छिन्नमस्तिका का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। उनके बिखरे और खुले केश हैं, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं। दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं।
क्या है इस रूप की कथा
माता द्वारा सिर काटने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ नदी में स्नान करने गईं थीं। उस दौरान स्नान करने के बाद उनकी सहेलियों को तेज भूख लगी और वे भूख से बेहाल होने लगी। भूख इतनी ज्यादा लगी थी कि वे भूख से तड़पने लगीं, जिसके बाद मां भवानी ने तलवार से अपना सिर काट दिया। कहा जाता है कि सिर काटने के बाद माता का कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और उसमें से खून की तीन धाराएं बहने लगीं। माता ने सिर से निकली उन दो धाराओं को अपनी दोनों सहेलियों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।
मन्नत मांगने के लिए बांधे जाते हैं पत्थर
मंदिर में चार दरवाजे हैं और मुख्य दरवाजा पूरब की ओर है। मुख्य द्वार से निकलते हुए मंदिर से नीचे उतरते ही दाहिनी ओर बलि स्थान है वहीं बाईं और नारियल बलि का स्थान है। इन दोनों बलि स्थानों के बीच में मन्नत मांगने के लिए लोग रक्षासूत्र में पत्थर बांधकर पेड़ व त्रिशूल में लटकाते हैं उसके बाद मन्नत पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है।
मान्यता है बड़ी
यहां मौजूद मुंडन कुंड पर लोग मुंडन के समय स्नान करते हैं जबकि पापनाशिनी कुंड को रोगमुक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है। सबसे खास दामोदर और भैरवी नदियों पर अलग-अलग बने दो गर्म जल कुंड हैं। नाम के अनुरूप ही इनका पानी गर्म है और मान्यता है कि यहां स्नान करने से चर्मरोग से मुक्ति मिल जाती है।
रात में यहां विचरण करती है मां
मंदिर रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है। शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा पसर जाता है। लोगों का मानना है कि मां छिन्नमिस्तके यहां रात में टहलती है इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं। नवरात्रि के समय पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, असम, मध्य प्रदेश, यूपी समेत कई प्रदेशों से साधक यहां पहुंचते हैं। मां छिन्नमस्तिके की विशेष पूजा अर्चना कर साधना में लीन रहते हैं।