सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी ने ईश्वर, धर्म, ज्ञान, प्रेम कर्म और भक्ति को लेकर कई ‘शब्द’ व ‘वाणियां’ मुखरित कीं। उनके प्रभावशाली उपदेश पवित्र धर्मग्रंथ ‘जपुजी साहिब’ में संग्रहित हैं। गुरु जी ने इंसान को धार्मिक व जातीय भेदभाव से मुक्त कर एकता के सूत्र में बांधा। साधुओं व अपने श्रद्घालुओं को आदर सहित भोजन करवाना आगे चल कर ‘लंगर’ परंपरा में तबदील हो गया जोकि आज तक कायम है। जहां जाति, अमीरी-गरीबी से परे हर इंसान एक ही स्थान पर बैठ कर पारंपरिक तरीके से शाकाहारी लंगर ग्रहण करते हैं। सिख समाज के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस को गुरु नानक जयंती के रूप में प्रति वर्ष बड़े उत्साह से मनाया जाता है। गुरु नानक देव जी को समर्पित कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं जो असीम श्रद्घा और भक्ति के केंद्र हैं-

गुरुद्वारा श्री गुरू का बाग 

गुरुद्वारा श्री गुरु का बाग एक ऐसी जगह है जहां गुरु नानक जी का घर था। सुल्तानपुर लोधी, जिला कपूरथला (पंजाब) में स्थित इसी स्थान पर उनके दो पुत्रों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीचंद का जन्म हुआ था। उस समय वहां एक कुआं भी मौजूद था जिस का पानी लंगर का भोजन पकाने में इस्तेमाल किया जाता था। 

गुरुद्वारा श्री कंध साहिब 

पंजाब के बटाला में स्थित यह गुरुद्वारा लोगों की आस्था का केंद्र है जहां आकर लोग अपनी मुरादें पूरी करते हैं। इस गुरुद्वारे का इतिहास गुरु नानक देव जी के विवाह से जुड़ा है। यहां उनकी ससुराल वालों ने बारात को ठहराया था।

यह स्थान उस समय कच्चा था जिसकी एक दीवार आज भी शीशे के फे्रम में वैसे ही खड़ी है, जैसी थी। कहा जाता है कि विवाह के समय गुरु नानक जी इसी कच्ची मिट्टी की दीवार के साथ बैठे थे। वधू पक्ष की एक बजुर्ग महिला ने गुरुजी से दूसरी ओर बैठने का आग्रह किया कि कहीं उन पर दीवार ना गिर जाए। तब गुरु नानक ने मुस्कुरा कर कहा था कि माताजी, यह दीवार युगों तक नहीं गिरेगी। इतिहास गवाह है कि पांच सौ सालों के बाद भी मिट्टी की कच्ची दीवार आज तक गुरुद्वारा कंध साहिब में मौजूद है। इनकी विवाह की वर्षगांठ पर हर साल यहां उत्सव का आयोजन होता है। 

गुरुद्वारा श्रीहट्ट साहिब जी

सुलतानपुर लोधी (पंजाब) में गुरु नानक देव जी ने नवाब दौलत खां लोधी के यहां एक लेखाकार के रूप में काम किया। गुरुद्वारा जी हट्ट साहिब उस जगह पर बनाया गया है जहां गुरु जी नवाब के लिए काम करते थे। उनके द्वारा उपयोग किए गए माप और वजन वाले पत्थर आज भी गुरुद्वारा के अंदर शीशे की पेटिका में रखे हैं। सुलतानपुर का नवाब गुरू जी की शाही भंडार में देख-रेख को लेकर उनसे बहुत प्रभावित था। कहते हैं कि यहीं से गुरु जी को ‘तेरा’ शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।

गुरुद्वारा श्री कोठरी साहिब

जब गुरू जी नवाब के लिए काम करते थे तो कुछ लोग उनसे ईष्या करने लगे। उन्होंने नवाब से शिकायत की कि गुरु नानक स्टोर से चोरी कर रहे हैं। नवाब के आदेश पर उन्हें अस्थायी रूप से जेल भेज दिया गया। बाद में जब जांच करने पर सब हिसाब सही निकला तो नवाब ने गुरुजी को रिहा कर दिया और माफी मांगते हुए उन्हें पदोन्नति की पेशकश की जिसे गुरु जी ने अस्वीकार कर दिया था। 

गुरुद्वारा श्रीबेर साहिब

यह सुलतानपुर लोधी का प्रसिद्घ मुख्य गुरुद्वारा है जो काली बेई (एक छोटी नदी) के किनारे स्थित है, जहां गुरु नानक देव जी सूर्योदय के बाद एक बेर की पेड़ की छाया में बैठ कर ध्यान लगाते थे। यह बेरी आज भी वहीं मौजूद हैं और इस पर फल लगते है। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन सूर्योदय से पूर्व जब वे स्नान कर रहे थे तो वे काली बेई में गायब हो गए और तीन दिन तक लापता रहे। यहीं उनका ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था। जब वे लौटे तो उन्होंने कहा ‘एक ओंकार सतनाम’। यहां इन्होंने बेर का एक बीज बोया जो आज एक बेर के विशाल वृक्ष के रूप में विद्यमान है।

गुरुद्वारा श्री अचल साहिब

यह गुरुद्वारा पंजाब राज्य के गुरदासपुर में स्थित है। अपनी यात्राओं के दौरान गुरु नानक देव जी यहां रूके थे। यहीं पर नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगरनाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद हुआ। उसके परास्त होने पर गुरु जी ने उन्हें समझाया कि ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है। 

गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक

जीवनभर धार्मिक यात्राएं करने और अनेक लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन् 1539 में वे परम ज्योति में विलीन हुए।

प्रथम सिख गुरू श्री गुरु नानक देव जी की याद में बनाया गया डेरा बाबा नानक गुरदासपुर के पश्चिम में 45 किमी. की दूरी पर है। ऐसा माना जाता है कि गुरु जी यहां 12 साल तक रहे। मक्का जाने पर उनको दिए गए कपड़े यहां संरक्षित हैं। 

गुरुद्वारा बेबे नानकी जी

बेबे नानकी जी, गुरूजी की बड़ी बहन थीं। यह गुरूद्वारा उनकी याद में 1970 के दौरान बनवाया गया था।  

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