चैत्र नवरात्रि
माता के भक्तों को बेसब्री से इंतज़ार है नवरात्रों का। 6 अप्रैल से शुरू होने वाले चैत्र नवरात्रि के दौरान लोग पूजा-पाठ, व्रत-उपवास आदि करते हैं। कोई अपनी  मनोकामना पूर्ति के लिए माता के मंदिर गुहार लेकर जाता है और कहते हैं इन दिनों माँ काफी खुश रहती हैं, तो जो भी भक्त उनके द्वार पूरी श्रद्धा से जाते हैं माँ उनकी सारी मन्नतें पूरी कर देती हैं। आज हम बताने जा रहे हैं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मौजूद माता के खास मंदिरों के बारे में, जहाँ नवरात्रि के दौरान लगता है भक्तों का मेला।
 
काली माता का मंदिर 
 
राजधानी के मशहूर मंदिरों में से एक चौक स्थित बड़ी काली माता का मंदिर सात सौ साल पुराना है। बताया जाता है कि शंकराचार्य ने माता की मूर्ति कि स्थापना की थी। कहते हैं कि मुगलों ने जब इस मंदिर पर हमला बोला था तो यहां के पंडितों ने यहां स्थापित मूर्ति को बचाने के लिए उसे एक कुएं में फेंक दिया था, जिसकी वजह से हमारी धरोहर तो बच गई, लेकिन देवी कि मूर्ति की जगह लक्ष्मी-विष्णु कि विग्रह मूर्ति की स्थापना कि गई। आज जिस मूर्ति को हम माता काली की मूर्ति समझ के पूजा करते हैं वो लक्ष्मी-विष्णु हैं।
 
कालीबाड़ी मंदिर
 
राजधानी के केसरबाग स्थित घसियारी मंडी में प्रसिद्द कालीबाड़ी मंदिर में नवरात्र के दिनों में यहां भक्तों की भारी भीड़ हो जाती है। नवरात्र के अलावा आम दिनों में सोमवार और शनिवार को यहां भक्तों का जमावड़ा लगता है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की स्थापना के समय मनोकामनाएं पूरा करने के लिए जीभ काटकर चढ़ाते थे। यह मां काली का एकलौता मंदिर है जहां मूर्ति कपड़ो से ढकी रहती है।
 
मां चन्द्रिका देवी 
 
लखनऊ से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित मां चन्द्रिका देवी तीर्थ धाम की महिमा ही न्यारी है। गोमती नदी के पास स्थित महीसागर संगम तीर्थ के तट पर एक पुराने नीम के वृक्ष के कोटर में नौ दुर्गाओं के साथ उनकी वेदियां चिरकाल से सुरक्षित रखी हुई हैं। यहां हर दिन हजारों भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। नवरात्र में 9 दिनों तक भक्तों की अच्छी खासी भीड़ लगी रहती है। भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मां के दरबार में आकर मन्नत माँगते हैं, चुनरी की गांठ बांधते हैं। मनोकामना पूरी होने पर मां को चुनरी, प्रसाद चढ़ाकर मंदिर परिसर में घंटा बांधते हैं।
 
शीतलादेवी मंदिर 
 
मेहदीगंज में स्थित शीतला देवी मंदिर में मां के चरणों में माथा टेकने दूर-दूर से लोग आते हैं। भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर का अतीत रहस्य के पन्नों में खोया हुआ है। माना जाता है कि इस मंदिर को घुसपैठियों ने ध्वस्त कर दिया था। पास ही के तालाब में देवी मां की मूर्ती मिली थी। इसके बाद मंदिर को दोबारा स्थापित किया गया। यहां रोजाना हजारों की संख्या में लोग आते हैं। ख़ासतौर पर नवरात्र में तालाब किनारे माता की आरती का दृश्य अद्भुत होता है। नवरात्र के नौंवे दिन लोग दूर-दूर से आकार तालाब के किनारे कंजक खिलाते हैं और तालाब में खेत्री विसर्जित करते है। नए शादीशुदा जोड़े यहां आकर अपने सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करते हैं। 
 
मरी माता मंदिर 
 
हजरतगंज से करीब 5 किलोमीटर दूर मेडिकल कॉलेज के सामने गोमती किनारे स्थित मरी माता मंदिर में नवरात्रि के दिनों में भक्तों की बहुत भीड़ उमड़ती हैं। मरी माता के मंदिर की खासियत यह है कि जो भक्त 11 शुक्रवार व्रत रखकर अपनी मुराद मांगता है, उसकी मनोकामना मातारानी पूरी करती हैं। वहीं, माँ दुर्गा के इन नवरात्रियों में वैष्णवी जागरण का भी विशेष महत्त्व है। 
 
उनई देवी का मंदिर 
 
इटौंजा क्षेत्र में स्थित उनई देवी का मंदिर भी बहुत फेमस है। नवरात्र में खासकर यहां हर रोज हजारों भक्तों की भीड़ रहती है। मान्यता है कि उनई देवी मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है कि सालों पहले यहां पर माता की मूर्ति स्वयं जमीन से निकली थी। इसके बाद से ही इस मंदिर की स्थापना की गई।