ममता -गृहलक्ष्मी की कहानियां: Mamta Hindi Kahani
Mamta Hindi Kahani

Mamta Hindi Kahani: गुप्ता जी सुबह – सुबह टहलते आज वीरजू टोले की तरफ जा रहे थे रास्ते में जो भी मिलता यही पूछता अरे गुप्ता जी गाड़ी खराब है क्या, ड्राइवर नही आया क्या, आज क्या बात है ? गुप्ता जी हसतें हुए बोलते ‘अरे नही आज बस पैदल चलने का मन था.. गुप्ता जी पहुँच गए जहाँ उनको जाना था और मलिन बस्ती में घर के बाहर से आवाज़ लगाते हुए बोले
“अम्मा!. ओ अम्मा आपके बेटे ने पैसा भेजा है।”
गुप्ता जी की बड़ी दुकान थी जिसमें ऑनलाइन का सब काम होता था.. बहुत सारे नौकर चाकर पर अम्मा का पैसा देने खुद गुप्ता जी ही आया करते थे। कभी गाड़ी से तो कभी पैदल, अम्मा आवाज़ सुनकर अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतार आंचल से साफ कर वापस पहनती अम्मा की बूढ़ी आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई..
गुप्ता जी से बोली बेटा बहुत दिन हो गए अपने बेटे से बात किये हुए आज मेरी बात करवा दो अपने मोबाइल से
गुप्ता जी ने टालना चाहा पर ज़िद की वजह से,,
“बेटा!.पहले जरा बात करवा दो।”
अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से गुप्ता जी की ओर देखा
“अम्मा!. इतना टाइम नहीं रहता है मेरे पास कि,. हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूं।”
गुप्ता जी ने अम्मा को अपनी जल्दबाजी बताना चाहा लेकिन अम्मा उससे चिरौरी विनती करने लगी..
“बेटा!.बस थोड़ी देर की ही तो बात है।” एक बार करवा दो अम्मा की आँखों से आँसू गिरने लगे,,
“अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!”
यह कहते हुए गुप्ता जी ने रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने किया..
“लो अम्मा!.बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना,.पैसे कटते हैं।” मेरे फोन पर…
उन्होंने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया उसके हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल-चाल लेती अम्मा मिनट भर बात करके संतुष्ट हो गई। उनके झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान छा गई।
“पूरे दो हजार रुपए हैं अम्मा!”
यह कहते हुए गुप्ता जी ने सौ-सौ के बीस नोट अम्मा की ओर बढ़ा दिए।
रुपए हाथ में ले गिनती करती अम्मा ने गुप्ता जी को इशारा किया..
“अब क्या हुआ अम्मा?”
“यह सौ रुपए रख लो बेटवा !”
“क्यों अम्मा?” गुप्ता जी ने आश्चर्य से पूछा।
“हर महीने रुपए पहुंचाने के साथ-साथ मेरे बेटे से मेरी बात भी करवाने,.कुछ तो खर्चा होता होगा ना!”
“अरे नहीं अम्मा!.रहने दीजिए।”
गुप्ता जी लाख मना करते रहे लेकिन अम्मा ने जबरदस्ती उनकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए और वह वहां से वापस जाने को मुड़ गयी।
अपने घर में अकेली रहने वाली अम्मा भी उसे ढेरों आशीर्वाद देती अपनी देहरी के भीतर चली गई।
गुप्ता जी अभी कुछ कदम ही वहां से आगे बढ़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा..
पीछे मुड़कर उन्होंने देखा तो उस कस्बे में उनकी जान पहचान का एक चेहरा सामने खड़ा था।
मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले शिव बाबू को सामने पाकर वो बहुत हैरान हुए..
“भाई साहब आप यहां कैसे?. आप तो अभी अपनी दुकान पर होते हैं ना?”
“मैं यहां किसी से मिलने आया था!.लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।”
शिव बाबू की निगाहें गुप्ता जी के चेहरे पर टिक गई..
“जी पूछिए भाई साहब!”
“भाई!.आप हर महीने ऐसा क्यों करते हैं?”
“मैंने क्या किया है भाई साहब?”
शिव बाबू के सवालिया निगाहों का सामना करते हुए गुप्ता जी तनिक सहम से गए बोले क्या बात है भाई ऐसे क्यों बोल रहे हो आप।
“हर महीने आप इस अम्मा को भी अपनी जेब से रुपए भी देते हैं और मुझे फोन पर इनसे इनका बेटा बन कर बात करने के लिए भी रुपए देते हैं!.ऐसा क्यों?”
शिव बाबू के सवाल सुनकर गुप्ता जी थोड़ी देर के लिए सकपका गए!.
मानो अचानक उसका कोई बहुत बड़ा झूठ पकड़ा गया हो लेकिन अगले ही पल उसने सफाई दी..
“मैं रुपए इन्हें नहीं!.अपनी अम्मा को देता हूंँ।”
“मैं समझा नहीं?”
गुप्ता जी की बात सुनकर शिव बाबू जरा हैरान हुए लेकिन गुप्ता जी आगे बताने लगे…
“इनका बेटा कहीं बाहर कमाने गया था और हर महीने अपनी अम्मा के लिए दो हजार रुपए भेजता था लेकिन एक दिन पैसे की जगह इनके बेटे के एक दोस्त का फोन आया।”
गुप्ता जी की बात सुनते शिव बाबू को जिज्ञासा हुई..
“कैसा फोन ?.क्या बोला था दोस्त ने ?”
“संक्रमण की वजह से उनके बेटे की जान चली गई!. अब वह इस दुनिया में नहीं रहा है।”
“फिर क्या हुआ भाई?”
शिव बाबू की जिज्ञासा दुगनी हो गई लेकिन गुप्ता जी ने अपनी बात पूरी की..
“हर महीने चंद रुपयों का इंतजार और बेटे की कुशलता की उम्मीद करने वाली इस अम्मा को यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई!.मैं हर महीने अपनी तरफ से इनका पैसा ले कर आता हूंँ।”
“लेकिन यह तो आपकी अम्मा नहीं है ना?”
“मैं भी हर महीने तीन हजार रुपए भेजता था अपनी अम्मा को!. लेकिन अब मेरी अम्मा भी कहां रहीं हैं।” यह कहते हुए गुप्ता जी की आंखें भर आई।
हर महीने गुप्ता जी से रुपए लेकर अम्मा से उनका बेटा बनकर बात करने वाले शिव बाबू आज गुप्ता जी के एक अजनबी अम्मा के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गए। और बोले भाई साहब आज से इस अम्मा के एक नही दो बेटे हैं अब से एक हजार मैं भी आपको दूंगा आप उसी लीफाफे में भर कर अम्मा को दे दिया करियेगा और हाँ भाई साहब अब से मैं अम्मा के बेटे बनकर बात करने का जो पैसा लेता था नही लूंगा
आज से अम्मा के दो बेटे मिलकर ख्याल रखेंगे दोनों आपस में यही बोलते हुए चले जा रहे थे.

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