आकर्षण: गृहलक्ष्मी की कहानी: Story in Hindi
Aakarshan

Story in Hindi: कभी-कभी जिंदगी ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां से हम चाहकर भी वापस लौट नहीं सकते। इसे हादसा कहूं या इत्तेफाक, किस्मत कहूं या रहमत, इन सवालों के जवाब आज चार सालों बाद भी मुझे नहीं मिला है।

आज से तीन साल पहले एक छोटा सा सफर मुझे कभी ना भूलने वाली याद दे गया। वेलेंटाइन डे, प्यार करने वालों के लिए सबसे प्यारा दिन। तीन वर्ष पहले- ‘देख, आदि मैं कुछ नहीं जानता। तुझे चलना है मतलब चलना है!’ ‘यार तू समझ क्यूं नहीं रहा है, मैं क्या करूंगा, तुम सबके साथ चलकर।’
‘फिर से वही बात, मैंने कहा ना तू चल रहा है बस, अभी इस बारे में मुझे कोई बहस नहीं करनी। मैं फोन रख रहा हूं। कल ठीक सात बजे मैं तुझे लेने आ रहा हूं, अपना सामान पैक कर लेना। दैट्स इट बाय।’ ‘अरे…या…र…।’

फोन के कट होते ही, आदित्य अपने आप में बड़बड़ाते हुए, ‘ये रॉकी भी ना, हद करता है। मैं क्या करूंगा उन सबके बीच। वो सब कपल्स, मैं अकेला, कुछ समझता नहीं है। चल आदि, कर ले पैकिंग, कर भी क्या सकता है। उससे कभी जीत सका है तू!’ सोचते, बड़बड़ाते हुए, आदि अपनी पैकिंग में लग गया। अगले दिन सवेरे सात बजे रॉकी और उसकी गर्लफ्रेंड सुरभि, कार लेकर आदित्य के घर आ गए। आदित्य अपने मामा के घर अकेला रहता था। दिल्ली में पढ़ाई के लिए आया था, लेकिन वहां उसके मामा का एक बंद मकान था इसलिए वो किसी पीजी या हॉस्टल में ना रहकर उनके घर रहता था।

आदित्य के सभी दोस्त जिसमें रॉकी के अलावा विकास और सौरभ शामिल थे, वो सभी हास्टल में रहते थे। उनके हॉस्टल के सामने ही गर्ल्स हॉस्टल भी था, जिसमें सभी ने अपनी पसंद की लड़की को चुन रखा था। आज वेलेंटाइन का दिन था, तो सभी दोस्त अपनी गर्लफ्रेंड के साथ दिल्ली से लगभग पचास किलोमीटर की दूरी पर स्थित दमदमा झील घूमने जा रहे थे। ये झील कपल्स के लिए परफेक्ट थी। साथ ही इसके आसपास कुछ रिजॉट्स भी है, जिसमें रुककर आराम किया जा सके।

तकरीबन दो ढाई घंटे की यात्रा करके ही सभी उस स्थान पर पहुंच गए। सौरभ ने वहां एक रिजॉट में चार कमरे भी बुक कर रखे थे। रास्ते भर मस्ती-मजाक, नाच-गाना करते-करते सभी फ्रेश होने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए। कुछ देर बाद सभी तैयार होकर झील पर घूमने के लिए निकल गए। दोस्तों की छेड़छाड़, मजाक, मस्ती में आदि भी अब अच्छा महसूस कर रहा था। सभी झील के किनारे पहुंचे और वहां बोटिंग के मजे लेने के लिए उन्होंने एक बोट बुक करवाई। उसमें आठ से दस लोग सफर कर सकते थे। सभी एक-एक कर बोट में सवार हो गए। आदि सबसे अंत में बोट में सवार हो ही रहा था कि अचानक एक लड़की की आवाज आई, ‘एक मिनट भईया, मुझे भी इसमें ले सकते हैं क्या?’

बोट का ड्राइवर- ‘हां-हां, मैडम आ जाइये।’ सौरभ- ‘अरे क्या आ जाइये भाई? ये हमने बुक करवाई है। हम पहले ही सात लोग तो हैं आपके साथ आठ हो गए। अब क्या इसको पूरा भर दोगे!’ ‘अरे साहब, अकेली लड़की है, क्या दिक्कत है। वैसे भी इसमें दस लोग तो आ ही सकते हैं। बैठने दीजिये ना!’ ‘अरे आप समझ क्यूं नहीं रहे हैं भाई, हम सब साथ हैं। वो आएगी तो…।’ सौरभ कुछ और बोलता इससे पहले आदि बीच में बोला- ‘अरे छोड़ ना यार। आने दे, जो भी है।’ आदि के ऐसा कहते ही सभी उसे छेड़ते हुए बोले- ‘ओह! अब समझे, तू तो बड़ा शातिर निकला यार। लड़की को यहां बुला भी लिया और हमको बताया भी नहीं!’ ‘अरे यार, तुम भी ना, कहीं भी शुरू हो जाते हो।’

बोट चलाने वाले ने उस लड़की को इशारे से बुलाया। वो लड़की पास आई तो बोट वाले ने आदि से ‘साहब, मैमसाब को थोड़ा हाथ देकर उस तरफ बिठा दीजिये।’ आदि, जो अभी तक उस लड़की की तरफ पीठ किए ही खड़ा था उसने पलट कर उस लड़की की तरफ देखा और देखता ही रह गया।
सुर्ख गुलाबी होंठ, उस पर हल्की पिंक रंग की लिपस्टिक, काले रंग की जींस और लाल रंग की घुटने से थोड़ा ऊपर तक कुर्ता, पैरों में बूट, कंधे पर लटका हैंडबैग, बाल आधे खुले हुए, जो हवा की वजह से चेहरे पर बिखर रहे थे। रंग भले ही सांवला था पर उसके नैन-नक्श किसी को भी मोह ले।
‘अरे साहब, हाथ दीजिये।’ बोट वाले के जोर से आवाज लगाने पर जैसे आदि होश में आया हो और उसने अपना हाथ उस लड़की की तरफ बढ़ाया। लड़की ने आदि का हाथ मजबूती से थामा और संभलते हुए बोट में सवार हो गई।

‘मेरा हाथ, एक्सक्यूज मी, मेरा हाथ तो छोड़िये, ओ मिस्टर।’ आदि ने उस लड़की का हाथ अभी भी थाम रखा था, जिसकी वजह से वो लड़की उससे ऐसा कह रही थी, पर आदि तो जैसे उसमें खो गया था। आदि की ऐसी हालत देख जहां एक ओर उसके दोस्त उसका मजा ले रहे थे वहीं दूसरी तरफ वो लड़की अब शर्म से लाल हो रही थी। तभी बोट चलाने वाले ने बोट की मशीन चालू की जिसकी तेज आवाज से आदि अपने अतीत में वापस आया और उसने हड़बड़ाते हुए उसका हाथ छोड़ दिया। सभी दोस्त खिलखिलाकर हंसने लगे। आदि भी अपनी हरकत पर सकुचा गया। उसने बड़ी मासूमियत से उस लड़की को कहा, ‘आई एम सॉरी।’

‘सॉरी, माय फुट। लड़की देखी नहीं कि लगे दाना डालने। देखो मिस्टर ये ओवर एक्टिंग किसी और के सामने करना, मेरे आगे नहीं। अच्छे से जानती हूं तुम दिल्ली के लड़कों को, एक मौका नहीं छोड़ते। गलती तो मेरी ही थी जो मैं इस बोट में आई। अब ऐसे घूर-घूरकर क्या देख रहे हो, लड़की हूं, खेत का गन्ना नहीं जो खा जाओगे। हद है, जहां देखो, सब घूरने लग जाते हैं। जैसे लड़की नहीं कोई अजूबा आ गया हो। तंग आ गई हूं मैं, इस दिल्ली से और यहां के लड़कों से। हाय राम, फूटी मेरी किस्मत। क्या सोचकर मैं यहां आई थी, मैं अपने…।’

‘अरे मैडम, बस कीजिए, सांस तो ले लीजिए।’ रॉकी ने उस लड़की को टोकटे हुए कहा। ‘हां-हां ठीक है, हो जाती हूं चुप। वैसे मुझे भी अजनबियों से बात करने का कोई शौक नहीं है। मैं तो किसी से बात करती ही नहीं, पर आप जैसे लोग मिल जाते हैं हर जगह तो क्या करूं।’ ‘सच में सिमी जी आप बहुत कम बोलती हो। थोड़ा बात किया कीजिए।’ सौरभ उस लड़की को छेड़ते हुए बोला। ‘हां, वही तो। थोड़ा बहुत तो इंसान बोलेगा ना। माना कम बोलना चाहिए, लेकिन थोड़ा बहुत तो बोल ही सकते हैं। लेंगे नहीं तो एक-दूसरे के बारे में जानेंगे कैसे। लेकिन हां, मैं यहां कम इसलिए बोलती हूं, क्योंकि ये दिल्ली के लड़के ना, बाबा रे बाबा! हमारे शहर में ऐसा नहीं है, पर पता नहीं क्यूं मैं वहां भी कम ही बोलती हूं। वो क्या है ना, मैंने बताया था ना कम बोलने से दिमाग शार्प रहता है बस इसलिए। तभी तो मैं हमेशा टॉप करती हूं।’

सिमी की नॉन स्टॉप बाते सुनकर सभी दोस्त एक-दूसरे को देखकर जोर-जोर से हंसने लगे। उनको ऐसे हंसता देख सिमी चुप हो गई। उसके चुप होते ही आदि ने सभी से कहा, ‘क्यूं हंस रहे हो तुम सब, बोलने दो ना उसे। आप बोलिये सिमी जी, बहुत अच्छा बोलती हैं आप।’ ‘नहीं-नहीं, मुझे अब कुछ नहीं बोलना। आप सब तो ऐसे हंस रहे हैं जैसे मैंने कोई चुटकुला सुना दिया हो। अरे नहीं पसंद था तो बोल देते ना। और वैसे भी मैं तो आप सभी को कुछ अच्छा ही बता रही थी कि कम क्यूं बोलना चाहिए। हद है, अच्छी बातें करने वालो की तो कोई वैल्यू ही नहीं है।’ सिमी की लगातार बोलते रहने और आदि का उसका साथ देते रहने से सौरभ, रॉकी और अन्य सभी आदि को छेड़ते हुए कहने लगे, ‘जोड़ी बढ़िया जमेगी आदि। तू वैसे भी कम बोलता है। तेरी तरफ से सिमी जी अकेले ही बोल देंगी।’

तकरीबन एक-डेढ़ घंटे तक सिमी की बातें सुनते-सुनते सभी वापस किनारे पर पहुंचे। सभी दोस्त अपने-अपने जोड़े में साथ चल दिए। आदि ने भी सिमी की बातों की तारीफ करते-करते उसे अपने साथ दिल्ली की दूसरी जगहों पर साथ घूमने के लिए तैयार कर लिया था। तकरीबन एक-डेढ़ घंटे तक सिमी की बातें सुनते-सुनते सभी वापस किनारे पर पहुंचे। सभी दोस्त अपने-अपने जोड़े में साथ चल दिए। आदि ने भी सिमी की बातों की तारीफ करते-करते उसे अपने साथ दिल्ली की दूसरी जगहों पर साथ घूमने के लिए तैयार कर लिया था।

पूरा दिन सभी दोस्त साथ में दिल्ली की प्रसिद्ध जगहों पर घूमकर, खा-पीकर रात को अपने-अपने हॉस्टल चल दिए, सिवाय आदि और सिमी के। सिमी को आदि उसकी बहन के घर छोड़ने वाला था। सिमी अपनी बड़ी बहन के घर दिल्ली घूमने आई थी। उसकी बातों से पता चला कि वैसे हर रोज वो और उसकी दीदी साथ ही घूमने निकलते हैं, लेकिन आज ऐन मौके पर दीदी की तबियत थोड़ी बिगड़ गई इसलिए सिमी अकेले निकल पड़ी। वैसे तो सिमी भी नहीं आ रही थी पर वो कल अपने शहर लखनऊ वापस जा रही थी इसलिए आज आखिरी दिन था घूमने का। तो उसकी बहन ने जिद्द करके उसे भेजा था।

आदि मन ही मन इसे अपनी किस्मत समझ रहा था कि आज उसकी मुलाकात सिमी से हो गई।
आदि अपनी बाइक पर सिमी को बिठाकर उसे उसकी बहन के घर छोड़ने चल दिया। उसकी बहन का घर आते ही सिमी आदि की बाइक से उतरी और उसको थैंक्स बोलकर जाने लगी। आदि पूरे दिन इसी उधेड़बुन में था कि वो सिमी से अपने दिल का हाल कैसे कहे और उसका मोबाइल नंबर कैसे मांगे। हालांकि, उसके दोस्तों ने अपने-अपने तरीके से उसे बहुत सारे टिप्स दिए थे, पर अपने स्वभाववश वो कुछ कर ही नहीं पाया। लेकिन जब सिमी अंत में उससे दूर जा रही थी तो आदि की दिल की धड़कने मानों रुक सी रही हो। वो कशमकश में पड़ गया कि क्या करे।

सिमी के हर बढ़ते कदम मानों उसे गहरा आघात पहुंचा रहे हो। कुछ कदमों तक गहन सोच विचार और दिल के जज्बात को उजागर करते हुए आदि ने सिमी को आवाज लगाई, ‘सिमी, फिर कब मिलोगी?’ आदि की बात सुन सिमी के बढ़ते कदम रुक गए। उसने पलटकर आदि की तरफ देखा और अपने कदम फिर से आदि की तरफ बढ़ाए। पहले सिमी के दूर जाने से और अब सिमी के पास आते कदमों ने आदि की हालत फिर से पतली कर दी थी। आदि फरवरी की ठंडी हवाओं में भी पसीने से तर-बतर हो गया था। वो नहीं जानता था कि सिमी की क्या प्रतिक्रिया रहेगी, उसकी धड़कने बढ़ती जा रही थी। वो कुछ और बोलता या करता तब तक सिमी उसके करीब आकर बोली, ‘लखनऊ में मिलूंगी मिस्टर आदि। अगर आप फिर से मिलना चाहें तो। वैसे लखनऊ ज्यादा दूर तो नहीं है। हां, पर इतना पास भी नहीं है। लेकिन आप चाहो तो आ सकते हो। मैं आपको लखनऊ की एक-एक बेहतरीन जगह दिखाऊंगी। आपको पता है…’

आदि ने अचानक उसके होठों पर अपना हाथ रख दिया और कहा, ‘मैं जरूर आऊंगा सिमी, तुमसे मिलने, तुम्हारे साथ वक्त बिताने, तुम्हारा शहर देखने, लेकिन उसके लिए मुझे तुम्हारा पता और नंबर भी तो होना चाहिए ना। क्या तुम मुझे वो दोगी! सिमी ने अपनी गर्दन हां में हिलाई। आदि के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने मुस्कुराते हुए कहा, ‘वैसे तुम चुप बिल्कुल अच्छी नहीं लगती हो। मैं तुम्हारी हर बात सुनना चाहता हूं, जिंदगी भर के लिए। ये लो मेरा फोन इसमें अपना नंबर सेव करो। आदि ने उसे अपना मोबाइल देते हुए कहा और उसके होठों से अपना हाथ हटाया।
सिमी ने मोबाइल लेकर मुस्कुराते हुए उसमें अपना नंबर सेव किया और दौड़ती हुई घर के भीतर चली गई। आदि भी मुस्कुराता हुआ अपने घर आ गया। उसी रात से दोनों के बीच मोबाइल पर बातचीत का सिलसिला लगातार चलता रहा। दोनों के बीच की बातचीत धीरे-धीरे प्यार में बदलने लगी। वर्तमान समय… आज पूरे तीन वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार मैं सिमी से मिलने उसके शहर, उसके घर जा रहा था। अपने जीवन की सबसे अनमोल चीज को हमेशा के लिए अपना बनाने। उसके घरवालों से उसका हाथ मांगने।