Foods to Relieve Constipation: यूं तो हम अधिकांश पके हुए अन्न का सेवन ही अधिक करते हैं पर क्या आप जानते हैं कि कच्चे और उबले अन्न का सेवन करने से हम न केवल कब्ज की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं बल्कि हृष्टï-पुष्ट भी रह सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे-
आ युर्वेदाचार्य अग्नि पर पकाए हुए भोजन की अपेक्षा कच्चे पदार्थों का सेवन अधिक हितकर मानते हैं, उनके अनुसार अग्नि पर पकाए हुए अन्न के पोषक तत्त्व जल जाते हैं, अर्थात नष्ट हो जाते हैं इसलिए उनके द्वारा शरीर का पोषण उस सीमा तक नहीं हो सकता, जिस सीमा तक कि शरीर को उसकी आवश्यकता होती है। अन्न को जितना प्राकृतिक रूप से सेवन किया जाएगा, उतने ही अधिक पोषक तत्त्व शरीर को प्राप्त होंगे तथा जीवन में कभी कब्ज की शिकायत नहीं होगी। तथापि सभी के लिए इसका निर्वाह बहुत कठिन है, विशेष कर गृहस्थों को, इसलिए उचित यह है कि आहार में पके हुए अन्न के साथ-साथ कुछ कच्चे और कुछ उबले हुए पदार्थों का समावेश करना लाभकारी हो सकता है।
कच्चे या प्राकृतिक आहार में फल, सब्जियों को मान्यता दी जानी चाहिए। सेब, संतरा, अंगूर, अमरूद, टमाटर आदि फल शरीर को पोषण तो देते ही हैं, साथ ही स्वादिष्ट भी होते हैं। इनसे अनेक विकारों का शमन भी हो जाता है, यदि इनको सलाद आदि के रूप में खाया जाए तो भी रुचिकारक हैं। आयुर्वेद में इन फलों के मुरब्बे डालने का जो विधान है, उससे भी अभीष्ट लाभ उठाया जा सकता है।
फलों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के खाद्यान्न पकाने भूनने या तलने पर सेवन के योग्य होते हैं उनका एक कारण यह भी है कि मनुष्य लाखों वर्षों से अन्न को पकाकर खाने का आदि हो चुका है, और पाचन करने की शक्ति भी उसे वंश परम्परा से प्राप्त हो चुकी है, इसलिए उसकी रुचि और अभ्यास में अपरिपक्व आहार की अनुकूलता प्राय: समाप्त हो चुकी है।
परन्तु, अभ्यास डालने से यह असम्भव नहीं कि हम कच्चे अन्न को पचा न सकें। उसे पचाने के लिए समर्थ होने पर हम अपने शरीर को अधिक स्वस्थ, सुंदर और सुगठित बना सकेंगे। घोर वनों में रहने वाले योगी सन्यासी अन्न को पकाकर खाने के झंझट में प्राय: नहीं पड़ते, वे प्राकृतिक कंद, मूल, फल को खाकर केवल जीवन निर्वाह ही नहीं करते, वरन् शरीर को भी स्वस्थ और बलिष्ठ बनाए रखते हैं।

कच्चे या अपक्व अन्न को भोजन में सम्मिलित करके उसे स्वादिष्ट और हितकर बनाना भी एक कला है, जिस पर नवीन ढंग से सोचा जा सकता है और वैज्ञानिक तो इस प्रकार के परीक्षण करते ही रहते हैं कि हम किस-किस अन्न को भोजन सूची में स्थान देकर उसका उचित उपभोग कर सकते हैं।
परन्तु प्राचीन काल के ऋषि-मुनि भी कम खोजी नहीं थे। उन्होंने भी कच्चे अन्न को अपक्वावस्था में ही खाने योग्य बनाने पर पूर्ण रूप से विचार कर लिया था। वे गेहूं, चना आदि अनाज को जल में बारह घंटे तक भिगो कर खाने योग्य मुलायम कर लेते थे। भीगे हुए अन्न को ढक कर रखने से या किसी स्वच्छ झीने कपड़े में बांधकर किसी डोरी आदि पर चौबीस घंटे लटकाने से भी अंकुर निकल आते हैं। तब उनके खाने में ही असुविधा नहीं होती, वरन् वह बड़े स्वादिष्ट भी लगते हैं। यदि इस प्रकार भीगे हुए अन्न या चने आदि को मिश्री के साथ सुबह के नाश्ते में लें तो अत्यंत बल बढ़ता है या आप उसमें नींबू, हरी मिर्च, नमक आदि डालकर भी स्वादिष्ट बना सकते हैं।
अपक्व आहार में और भी अनेक वस्तुओं का समावेश था, जैसे कच्चे फल, गाजर, मूली, टमाटर आदि शाक, यहां तक कि धारोष्ण दूध ही पीते थे। गाय का धारोष्ण दूध (दुधारु पशु से प्राप्त किया गया ताजा दूध) तो चिकित्सा ग्रंथों में भी औषधियों के अनुपात रूप से मान्य है। इस प्रकार यह कच्चे पदार्थ बहुत लाभकारी होते हैं।
हमारे शरीर के लिए कच्ची हरी मटर बहुत ही हितकारी है। इसमें सभी फलों, शाकों और मेवों से भी अधिक पोषक तत्त्वों की विद्यमानता है। यह बहुत ताकतवर और अनाज की पूर्ति करने वाला एक पूर्ण खाद्य है। इसके सेवन से भी लाभ उठाया जा सकता है। यह मैदानों में शीत ऋतु में आती है और पहाड़ों में वर्षा ऋतु में आती है।
हम यह नहीं कहते कि सभी मनुष्यों को इसी प्रकार कच्चे पदार्थों को भोजन करना ही चाहिए, वरन् हम एक ऐसा तथ्य बताना चाहते हैं, जिसके द्वारा भोजन में पोषक तत्त्वों का अधिक से अधिक समावेश भी हो सके और किसी प्रकार की कठिनाई भी प्रतीत न हो। इनके लिए ऐसे पदार्थों का समावेश करें, जोकि उबालकर खाया जा सके। क्योंकि उबाले हुए अन्नों में पोषण तत्त्वों का ह्यास, अधिक स्तर तक नहीं हो पाता, और न उनके स्वाद में ही कोई खराबी आती है। परन्तु उन पदार्थों की अधिक देर तक और तेज आग पर न उबलने की सावधानी अवश्य बरती जानी चाहिए।
चूल्हे पर सेंककर पकाई हुई रोटी आदि पदार्थ भी उबाले हुए पदार्थों से कम गुण नहीं रखते। आधुनिक डबल रोटी आदि को भी उसके समान समझना चाहिए। आग पर सेंक कर पकाए एक कच्चे चने शरीर में पोषक तत्त्व तो पहुंचाते ही हैं, साथ ही पेट को भी ठीक रखते हैं। इसी प्रकार गोभी आदि की भी एक उबाल देकर काम में लाना उपयोगी रहता है। बथुआ आदि हरे शाकों का प्रयोग उबालकर कर सकते हैं, उसकी भूजी या रायता बनाकर खा सकते हैं।
केवल वाष्प के योग से पकाए हुए पदार्थ भी उतने गुणहीन सिद्ध नहीं होते, जितने की अग्नि पर सीधे पकाए जाने वाले अन्न गुणहीन हो जाते हैं, यदि प्रेशरकुकर में रखकर दाल, चावल, सब्जी आदि का परिपाक किया जाए तो वे बहुत जल्दी पक जाने के कारण अपने पोषक तत्त्वों को प्राय: नष्ट नहीं होने देते।
कुछ लोगों को अधिक तला-भुना अन्न ही रुचिकर लगता है, इसलिए वे उसके गुण-दोषों की उपेक्षा करते हैं और हानि उठाते हैं। परंतु मित्रों किसी भी स्वाद को प्रिय या अप्रिय मानना अभ्यास पर निर्भर करता है और अभ्यास का परिवर्तन तो अपने हाथ की बात है। यदि आप चाहते हैं कि आपका स्वास्थ्य और यौवन चिर स्थायी रहे, तो आपको स्वाद की उपेक्षा करनी होगी। यह सर्वमान्य तथ्य है कि मनुष्य जीवन को दीर्घ बनाने के लिए स्वाद का कोई महत्त्व नहीं है और हमें अधिक सुस्वादु वस्तुओं का मोह छोड़ केवल स्वास्थ्यवर्द्धक पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए।