सदी के महानायक 72 साल के अमिताभ बच्चन आज भी दर्शकों को अपने अभिनय से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

शमिताभ में आपके साथ धनुष और अक्षरा हसन काम कर रहे हैं। पहले आपने रजनीकांत और कमल हसन के साथ काम किया था, युवा पीढ़ी के साथ काम का कैसा अनुभव है?
धनुष एक सक्षम, मंजे हुए सुपरस्टार हैं। दक्षिण भारत के सभी कलाकार अनुशासन प्रिय होते हैं। अक्षरा हसन फिल्मी परिवार से हैं, असिस्टेंट डायरेक्टर रह चुकी हैं, इसलिए फिल्मी वातावरण से परिचित हैं। युवा पीढ़ी के साथ काम करके मुझे हमेशा अच्छा लगता है। नया जोश उत्साह जागरूकता देखकर हैरान रह जाता हूं।

फिल्म का शीर्षक शमिताभ की जगह अमिताभ होता?
फिल्म का शीर्षक कहानी के साथ जुड़ा हुआ है, अभी आप ऐसा कह रही हैं लेकिन फिल्म देखने के बाद आपको अपना निर्णय बदलना पड़ेगा।

किस तरह से आप फिल्म का चुनाव करते हैं?
कहानी के अनुसार अपनी फिल्म का चुनाव करता हूं। अब इस उम्र में मुझे रोमांटिक रोल तो नहीं मिलेगा, इसलिए करैक्टर रोल कर रहा हूं। उम्र के अनुसार ही भूमिका मिल रही है। कभी रिटायर बाप या भूत या पियक्कड़ आदमी, बस उसी में अपने को ढालने की कोशिश करता हूं।

शमिताभ के डायरेक्टर आर. बाल्की विज्ञापन की दुनिया से आए हैं, आपने उनके साथ चीनी कम और पा फिल्में भी की हैं?
आर. बाल्की की सोच उनका दिमाग, उनकी कहानी, बताने का दृष्टिकोण सब अलग है। विज्ञापन की दुनिया से होने के कारण उनकी पटकथा में इसकी झलक दिखती है। यही वजह है कि पा और चीनी कम एकदम अलग किस्म की फिल्में थीं। शमिताभ की कहानी भी एकदम अलग है, पहली बार ऐसी कोई कहानी आई है।

शमिताभ में रेखाजी भी हैं?

जी हां, वह एक सीक्वेंस में धनुष के साथ है और वह खुद का किरदार निभा रही हैं। 

फिल्म के समीक्षक आपके लिए क्या मायने रखते हैं?
फिल्म समीक्षक काफी मायने रखते हैं। समीक्षक का दृष्टिकोण हमसे अलग होता है, जिस नजर से वह फिल्म देखते हैं हम उस नजर से फिल्म नहीं देखते। हम फिल्म बनाने में इतने लिप्त होते हैं कि उसमें गलतियां नजर नहीं आती। अपनी बनाई चीज में हमें बुराई नहीं दिखती किंतु जब समीक्षक और दर्शक फिल्म देखते हैं तो वह पहली नजर में ही गलती बता देते हैं। यही पारखी नजर समीक्षक में होती है, उसका यह गुण होता है और हम उसकी इज्जत
करते हैं।

आप किस तरह से टाइम मैनेज करते हैं?
हर काम को करने के लिए समय मिल जाता है, ना जाने क्यों लोगों को लगता है कि कैसे समय मिलता है। हम दिन भर में यह निर्धारित कर लेते हैं कि क्या करना है, कब फिल्म करनी है, कब टीवी करना है, कितने बजे तक काम करेंगे। फिर परिवार और मित्रों के साथ समय व्यतीत करना है, ब्लॉग लिखना है। बस इसी तरह दिन पूरा हो जाता है। दरअसल समय-समय से निकलता है।

अब तक आपने बहुत सारे डायरेक्टर के साथ काम किया है। किस के साथ काम करके सबसे ज्यादा अच्छा लगा?

मेरी सब फिल्में, सब कहानी और सभी डायरेक्टर्स बहुत अच्छे हैं। सब के साथ काम का अनुभव अच्छा रहा। सब के साथ हमने अपनी अनुमति से काम किया है, इसलिए सबका आदर करना चाहिए।

पहले और आज के दौर की फिल्मों में क्या अंतर है?
पहले के दौर में फिल्म निर्माण में सब के पास समय ज्यादा था, ठहराव था, दृश्य बताने के लिए भी ज्यादा समय दिया जाता था, संगीत, नृत्य, लेखन, सभी अच्छा होता था। पुराने गाने आज भी याद रहते हैं। उनके सुर, शब्द यहां तक कि बीच का म्यूजिक भी याद रहता है, लेकिन आजकल के गाने, क्षमा कीजिएगा शायद मुझे समझ ना हो, मुझे याद ही नहीं रहते।

शमिताभ फिल्म के माध्यम से दर्शकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
जीवन में कई बार ऐसे क्षण आते हैं, जब आपको किसी का सहयोग लेना पड़ता है तो उस सहयोग, उस मिलन का आदर कीजिए, जीवन से उसे मत निकालिए, उसका मूल्य समझिए, जिससे बाद में पछतावा ना हो।