श्वेता
गीता के अनुसार मनुष्य को कभी भी आलसी नहीं होना चाहिए। अपने कर्तव्य के अनुसार लगातार कर्म करते रहना चाहिए और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
गीता के अनुसार जीवन का आनंद ना तो बीते हुए कल और ना ही भविष्य में है, बल्कि वर्तमान में है। वर्तमान पर ध्यान देने पर भविष्य अपने आप अच्छा होगा।
गीता में कहा है कि हर कार्य व परिणाम के पीछे कोई ना कोई कारण होता है। इसलिए मनुष्य को कारण अच्छा करने पर ध्यान देना चाहिए। इससे परिणाम अपने आप अच्छा होगा।
गीता मनुष्य को निडर होकर जीना सिखाती है। गीता कहती है कि शरीर व आत्मा दोनों अलग- अलग है। इसलिए शरीर के बूढे होने या मरने की चिंता व डर नहीं होना चाहिए।
गीता के अनुसार प्रकृति में कुछ भी स्थाई नहीं है उसमें बदलाव होता रहता है। इन बदलावों की वजह से ही जीवन में गरीबी- अमीरी, रोग- नीरोग तथा सुख दु:ख चलते रहते हैं।
गीता के अनुसार मनुष्य को कर्म किसी उम्मीद या आशा से नहीं करना चाहिए। क्योंकि यदि किसी से अपेक्षा कर कोई कार्य किया जाएगा तो वह उसके पूरी होने के मोह में बंध जाएगा।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म के किसी एक मार्ग के प्रति कट्टरता की जगह मनुष्यों को जो भी सहज व सरल मार्ग लगे उसे अपनाने का रास्ता बताया।
गीता के अनुसार हर परिवर्तनशील चीज को दर्शक की तरह देखते हुए उसमें खुद को लगाना चाहिए। इससे मनुष्य सुख व दुख दोनों से ऊपर उठते हुए परम आनंद को प्राप्त कर सकता है।
श्वेता