सुनैना

उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर क्यों है इतना प्रसिद्ध जाने रहस्य

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर। जहाँ भक्तों को दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं।

मान्यता है कि असुर से लोगों की रक्षा के ल‌िए महाकाल यहां प्रकट हुए थे। असुर के वध के बाद लोगों ने श‌िवजी से वहीं रहने की प्रार्थना की।

भगवान शिव महाकाल ज्योत‌िर्ल‌िंग के रूप में वहीं स्थापित हो गये। यह शिवलिंग काल के अंत तक यहीं रहेगा, इसलिए इसे महाकाल भी कहा जाता है।

हर सुबह महाकाल की भस्म आरती करके उनका श्रृंगार होता है और उन्हें ऐसे जगाया जाता है। इसके लिए वर्षों पहले शमशान से भस्म लाने की परंपरा थी।

पिछले कुछ वर्षों से यह परंपरा बदल गयी है। अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़‌ियों को जलाकर भस्‍म तैयार किया जाता है।

मंदिर में एक बड़ा कुंड भी है।माना जाता है कि इस कुंड के दिव्य जल से  स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।

यहां के नियमानुसार,महिलाएं इस आरती को नहीं देख सकती हैं, इसलिए आरती के समय उन्हें घूंघट करना पड़ता है।

आरती के समय पुजारी भी मात्र एक धोती में आरती करते हैं। अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र को धारण करने की मनाही रहती है।

महाकाल की भस्म आरती के पीछे एक यह मान्यता भी है कि भगवान शिवजी श्मशान के साधक हैं, इस कारण भस्म को उनका श्रृंगार-आभूषण माना जाता है।

ऐसी भी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग दोष से भी मुक्ति मिलती है।

सुनैना

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