जैसी करनी वैसी भरनी-21 श्रेष्ठ बुन्देली लोक कथाएं मध्यप्रदेश: Hindi Moral Story
Jaisi Karni Waisi Bharni

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Hindi Moral Story: बहुत पुरानी बात है। सृष्टि में जीव-जंतुओं का निरंतर विस्तार होता जा रहा था। सृष्टि में जीव-जंतुओं की विभिन्न योनियों की संख्या बढ़ते-बढ़ते चौरासी लाख तक पहुँच गई। जीवों की जनसंख्या बढ़ने साथ-साथ उनके कर्म और कर्मों के परिणामों का सम्यक लेखा-जोखा रखकर उन्हें पुण्य-पाप कर्मानुसार पुरस्कार या दंड देना दिन-ब-दिन ब्रह्मा जी के लिए कठिन होता जा रहा था। कभी-कभी ब्रह्मा जी के गणों से भूल-चूक भी होने लगी थी। अव्यवस्था से संत्रस्त होकर ब्रह्मा जी ने परात्पर परब्रह्म से समाधान हेतु क्षिप्रा नदी के तट पर अवंतिकापुरी (उज्जैन) के अंकपात क्षेत्र में ध्यान मग्न होकर अपनी समस्या का समाधान चाहा। ब्रह्मा जी परात्पर परमब्रह्म के ध्यान में ऐसे लीन हुए कि उनके मुख पर दाढ़ी जम गई। उनके ऊपर जीव-जंतु चढ़ते-उतरते पर उनका ध्यान न टूटता। कभी मेघ गरजते-बरसते, कभी शेर दहाड़ता, कभी नाग फुफकारता, कभी कोई रूपसी खिलखिलाती-नाचती पर ब्रह्मा का तप भंग न होता। ग्यारह हजार वर्ष तक ब्रह्मा जी तपस्या करते रहे तब परमब्रह्म प्रसन्न हुए और ब्रह्मा जी को ध्यान में दर्शन देकर पूछा कि वे क्या चाहते हैं?

ब्रह्मा जी ने अपनी समस्या बताई और उसका समाधान चाहा। परमब्रह्म ने कहा कि उनकी समस्या का निदान करने वाला पुरुष उन्हें शीघ्र ही मिलेगा। ब्रह्मा जी ने नेत्र खोलकर देखा तो उन्हें अपने सामने एक नीलाभायुक्त कमल नयन श्याम पुरुष दिखाई दिया। उस दिव्य पुरुष के अधरों की मुस्कराहट से ब्रह्मा ने शांति अनुभव करते हुए जानना चाहा। हे तात! आप कौन हैं?

उस दिव्य विभूति ने उत्तर दिया कि वह सूक्ष्म रूप में हर प्राणी की काया में रहने वाला ‘आत्म तत्व’ है, उसके निकल जाने के बाद काया को ‘काया’ न कहकर ‘मिट्टी’ कहा जाता है और वह काया जिन पंचतत्वों से निर्मित होती है, उन्हीं में मिल जाती है या मिला दी जाती है।

ब्रह्मा ने फिर पूछा कि उन्हें किस नाम से पुकारा जाए?

तब उस परमशक्ति ने कहा कि उन्हें हर प्राणी की काया में सूक्ष्म रूप से स्थित होने पर ‘कायस्थ’ कहा जाता है। उनका अपना कोई एक चित्र या आकार नहीं है। हर जीव का चित्र या आकार उनका अपना है। इसलिए सृष्टि रहस्य को जानने वाले उनका चित्र ज्ञात न होने या अज्ञात (गुप्त) होने के कारण उन्हें ‘चित्रगुप्त’ संबोधन देते हैं।

तब ब्रह्मा ने उन्हें साष्टांग प्रणाम करते हुए पूछा कि आपका कार्य क्या है?

चित्रगुप्त जी ने ब्रह्मा को शुभाशीष देते हुए कहा कि वे सूक्ष्म जीवन शक्ति हैं। अपनी आधिदैविक और लौकिक शक्तियों से प्राणी द्वारा किये गए कर्मों का निष्पक्षतापूर्वक मूल्यांकन कर उसे उसकी करनी का परिणाम देते हैं।

ब्रह्मा ने जिज्ञासा की कि चित्रगुप्त जी की कृपादृष्टि पाने के लिए क्या करना चाहिए?

चित्रगुप्त जी ने ब्रह्मा के प्रश्न का समाधान करते हुए कहा कि प्राणी को सदा सत्कर्म करना चाहिए, दुष्कर्मों से दूर रहना चाहिए, तभी वह मेरी कृपा पा सकता है।

ब्रह्मा ने प्रश्न किया की प्रभु! सत्कर्म क्या है और दुष्कर्म क्या है?

उस परम पुरुष ने शांत स्वर में कहा कि सत्कर्म वह है जो सबके हित की भावना से किया गया हो और दुष्कर्म वह है जिससे केवल करने वाले का भला और शेष सबकी हानि हो या शेष सबको कष्ट हो।

ब्रह्मा जी ने पूछा हे नाथ! सृष्टि में प्राणियों की विविधता और संख्या में लगातार अनुमान से अधिक वृद्धि हो रही है। मैं उनके कर्मों का लेखा-जोखा रखने में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूँ। सृष्टि व्यवस्था कैसे बनाई रखी जाए?

यह सुनकर चित्रगुप्त जी बोले कि मैं अपने एक अंश से देव रूप में जन्म लँगा। मेरी शक्तियाँ नागकुल और देवकुल में जन्मेंगी। वे ‘नंदिनी’ और ‘इरावती’ नाम से मेरी पत्नियाँ होंगी। नाग भूमि के नीचे के तत्वों और देव भूमि के ऊपर के तत्वों व शक्तियों के सूचक हैं। इस तरह मैं विविध प्रजातियों और सभ्यताओं में समन्वय और ताल-मेल का सन्देश दूंगा। मेरे नीति, दर्शन और धरम प्रवीण बारह पुत्र होंगे, जो ज्ञान-विज्ञान-कला की विविध शाखाओं में प्रवीण होंगे। वे जीवन के विविध क्षेत्रों में कर्म नैपुण्यता के प्रतीक होंगे। वे समस्त कार्य-फल प्राप्ति की आशा के बिना चराचर के प्रति कल्याण भावना से करेंगे।

फल ही न मिले तो कर्म कौन करना चाहेगा और कर्म न हो तो सृष्टि का क्रिया व्यापार ही रुक जाएगा-ब्रह्मा ने चिंता व्यक्त की।

ऐसा नहीं होगा। कर्म का परिणाम तो होता ही है, होगा ही। निष्काम कर्म करते समय अनजाने में किसी का अहित हो जाए तो वह दंडनीय न होगा, जबकि सकाम कर्म का शुभाशुभ परिणाम भोगने की बाध्यता होगी। अशुभ कर्म करने पर उसके दुष्परिणाम से कोई व्रत, पूजा, उपवास, देवी-देवता बचा नहीं सकता। हर प्राणी और सभी प्राणियों को कर्म फल स्वयमेव मिलना ही है। इसलिए हर जीव यह याद रखे ‘जैसी करनी, वैसी भरनी।’

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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