गृहलक्ष्मी की कहानियां : दोपहर के खाने के बाद सविता जी थोड़ा सुस्ताने जा ही रही थीं कि बहू रितु का कॉल था, ‘मां आज रात के खाने पर मेरे खास मेहमान आ रहे हैं, आपकी फेवरेट गट्टे की सब्जी बनेगी, प्लीज जरा सामान चेक कर लीजिए ना, कुछ लाना हो तो बताइए।
गट्टे की सब्जी यानी कि सविता जी के जादुई हाथों का स्वादिष्ट करतब। घर की हर दावत में यह खाने की मेज की शोभा बढाती तो बाहर पार्टी में उनसे इसे ही बनाने का अनुरोध होता।
स्टोर में सामान देखते हुए उन्हें यह सोच कर संतोष हो रहा था कि दो महीने पहले ही ब्याह कर आई बहू को इसी बहाने अपनी खास डिश सिखाने का मौका मिलेगा।
बेडरूम में जाकर लेटी तो आंख लग गई। शाम की चाय पीकर ड्राइंगरूम ठीक किया और तैयार होकर रितु का इंतजार करने लगीं।
नियत समय पर रितु आई और ‘दस मिनट में किचन में आती हूं मां कहकर कमरे में चली गई।
इस बीच सविता जी दिया-बत्ती करने भगवान के सामने आलथी-पालथी मार कर बैठ तो गईं मगर मन रसोई में ही अटका पडा था और कान इंतजार कर रहे थे रितु की पुकार का, ‘मां कहां है आप? जल्दी से बताइए ना बेसन कितना लूं?
मगर अफसोस! पूरे पन्द्रह मिनट बाद रसोई से सिर्फ बरतन खडखडाने की आवाज आई। अब उनके सब्र का बांध टूट चुका था, हाथ में तुलसी चौरे का दीपक बाहर रखने जाते हुए जब रसोई में झांका तो देखा, बाएं हाथ में मोबाइल थामें रितु दाहिने हाथ से बेसन गूंथ रही थी।
किसी तरह अपने कमरे की ओर लौटते उन्हें याद आया कि पिछले दो महीनों में रितु से नए मोबाइल से सम्बंधित ढेर सारी जानकारी हासिल करते हुए ना तो उन्हें किसी कमतरी का अहसास हुआ और ना ही उनका अहं आहत हुआ, फिर भी आज उनके साथ यह सब। नई पीढ़ी द्वारा सुविधा से हासिल स्वावलंबन की इस नई सोच से वे बेहद आहत और स्तब्ध थीं।
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